DU SOL NCWEB 5th HINDI GE अनुवाद व्यवहार और सिद्धांत CHAPTER 4 अनुवाद प्रक्रिया | SOL EXAM NOTES

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5th HINDI GE  अनुवाद व्यवहार और सिद्धांत

CHAPTER 4  अनुवाद प्रक्रिया

अनुवाद प्रक्रिया में स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा का उचित ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। अच्छे अनुवादक के लिए इन दोनों का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। साहित्यानुवाद में अनुवादक से अपेक्षाएं और अधिक बढ़ जाती हैं। साहित्यानुवाद में अनुवादक को स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा के साथ-साथ दोनों भाषाओं की संस्कृति का ज्ञान होना भी अत्यंत आवश्यक है। उदाहरण के लिए यदि किसी जर्मन पाठ का हिंदी में अनुवाद करना है तो अनुवादक के लिए इन दो भाषाओं के ज्ञान के अलावा जिस चीज की आवश्यकता है वह है इन दोनों की संस्कृतियों का ज्ञान। और यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि यह ज्ञान फौरी या सतही किस्म का न हो अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाने की संभावना होती

अनुवाद प्रक्रिया का स्वरूप: अनुवाद करते हुए किन बातों का ध्यान रखना चाहिएइसे ही मोटे तौर पर अनुवाद की प्रक्रिया कहा जाता है। अनुवाद एक जटिल भाषिक प्रक्रिया का परिणाम या उसकी परिणति हैजब हम यह कहते हैं तो इसका सीधा साधा अर्थ यह निकलता है कि अनुवाद की प्रक्रिया का फल हैअर्थात किसी भी पाठ्य सामग्री को एक भाषा से दूसरी भाषा में बदलना अनुवाद कहलाता है|

अनुवाद प्रक्रिया पर विभिन्न अनुवाद चिंतकों ने चर्चा की है। यूजीन नायडा अनुवाद के मूलतः तीन चरणों की बात करते हैं। ये तीन चरण हैं पाठ विश्लेषणअंतरण और पुनर्गठन ।

न्यूमार्क के अनुसार अनुवाद प्रक्रिया के तीन चरण हैं - बोधनअभिव्यक्तिकरण और पाठ निर्माण ।

न्यूमार्क द्वारा बताए गए अनुवाद प्रक्रिया के ये तीन चरण नायडा द्वारा बताए गए तीन चरणों से मिलते-जुलते ही हैं।

 

डॉ भोलानाथ तिवारी का चिंतन-भारतीय विद्वान् और प्रमुख भाषाविज्ञानी ने अनुवाद

प्रक्रिया के ये पाँच चरण सुझाए हैं-

  • पाठ-पठन
  • पाठ- विश्लेषण
  • भाषांतरण
  • समायोजन
  • मूल से तुलना

डॉ. भोलानाथ तिवारी द्वारा सुझाए गए अनुवाद-प्रक्रिया के तत्त्वों को इस प्रकार समझा जा सकता है-

 


1. पाठ-पठन- पहला चरण उस सामग्री को पढ़ने का है जिसका अनुवाद किया जाने वाला है। यह पाठ-पठन दो दृष्टियों से किया जाता है। एक तो भाषिक अर्थ दृष्टि से किया जाता है और दूसरा विषयक अर्थ की दृष्टि से पाठ पढ़ना इसलिए आवश्यक है ताकि पता चल जाएगा कि उसकी भाषा कैसी हैकहीं कठिन तो नहीं हैअगर है तो उसे समझने की आवश्यकता है। इसके लिए उस भाषा के जानकार से या अच्छे कोश की मदद ली जा सकती है। यह भी देखा जा सकता है कि कहीं कठिन भाषा होने के कारण पाठ ही न समझ आ रहा हो। ऐसा भी हो सकता है कि उसे समझने के लिए प्रामाणिक पुस्तकों की आवश्यकता पड़े। यह बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि अर्थ के निर्धारण के लिए कालदेश लिंगवचनप्रसंग आदि उन बातों पर ध्यान देना चाहिए जो अर्थ निर्धारण के लिए आवश्यक हैं।

 

2. पाठ विश्लेषण: इस चरण में अनुवाद की दृष्टि से पाठ का विश्लेषण किया जाता है। आवश्यकतानुसार पाठ पर निशान लगाए जाते हैं। इसमें मुख्य रूप से इस बात पर बल दिया जाता है कि किस शब्द का अनुवाद किया जाना है। कहाँ पदबंध का अनुवाद किया जाएगा और कहाँ उपवाक्य का अनुवाद करना होगा और कहाँ वाक्य का। कहाँ एक से अधिक वाक्य का अनुवाद करना पड़ेगा और कहाँ कई वाक्यों को मिलाकर एक वाक्य से काम चल जाएगा। कभी-कभी तो प्रोक्ति स्तर के अनुवाद की आवश्यकता पड़ती है।


3. भाषांतरण(Translation): इस चरण में पाठ विश्लेषण के आधार पर विभक्त स्रोत भाषा की इकाइयों का लक्ष्यभाषा की इकाइयों में अंतरण किया जाता है। यह अंतरण भी प्रमुख रूप से तीन प्रकार है- 1. किसी इकाई का समान इकाई मेंजिसे शब्द शब्दपदबंध-पदबंधउपवाक्य-उपवाक्यवाक्य बंध- वाक्य बंध अंतरण कह सकते हैं। 2. बड़ी इकाई-छोटी इकाई (जैसे उपवाक्य पदबंध)3. छोटी इकाई बड़ी इकाई जैसे पदबंध उपवाक्य।

 

4. समायोजनः अनुवाद का चौथा चरण है। यहाँ अंतरित पाठ का लक्ष्य भाषा की दृष्टि से समायोजन किया जाता है। इसमें भी तीन बातों का ध्यान रखा जाता है- भाषा सहज और प्रभावी होनी चाहिए। 2. स्रोत भाषा की छाया नहीं होनी चाहिए। 3. अर्थ स्पष्ट होना चाहिए। अगर कोई वाक्य यह है I have taken my food. अगर इस वाक्य यह अनुवाद किया जाता है कि मैंने अपना खाना ले लिया है तो यह अनुवाद घटिया अनुवाद है क्योंकि इसमें स्रोत भाषा की छाया आ गई है। हिंदी में यह वाक्य इस प्रकार लिखना चाहिए- 'मैंने खाना खा लिया है।तीसरी बात यह है कि अर्थ स्पष्ट होना चाहिए। यह अर्थ की स्पष्टता भाषिक स्तर पर होनी चाहिए और विषय के स्तर पर भी।

 

5. मूल से तुलना: चौथे चरण में अनुवादक को अपने अनुवाद की मूल से तुलना कर लेनी चाहिए। अनुवाद न तो मूल से कम कह रहा हो और न मूल से ज़्यादा ही। न ऐसा लगे कि यह मूल से कुछ हट कर कह रहा है। कहने का अभिप्राय यह है कि मूल अर्थ संकोचअर्थ विस्तार और अर्थादेश आदि दोषों से मुक्त होना चाहिए। उसकी भाषा और शैली भी मूल के अनुसार होनी चाहिए।

 

पुनरीक्षण

पुनरीक्षण शब्द पुनः ईक्षण से मिलकर बना है जिसका अर्थ है पुनः देखना। अनुवाद के संदर्भ में पुनः ईक्षण से तात्पर्य है अनूदित पाठ(Translate Version) का पुनःपाठ(review) तथा उसमें अपेक्षित सुधार करना। किसी पाठ के अनुवाद से पूर्व अनुवादक से यह अपेक्षा की जाती है कि उसे दो भाषाओं के साथ उस विषय विशेष का भी ज्ञान हो जिसका कि वे अनुवाद कर रहे है।

अनुवादक के लिए दो भाषाओं के साथ संबंधित विषय का ज्ञान होना आवश्यक है। इतनी जानकारी होने के बावजूद भी अनुवादक को पाठ का अनुवाद करते समय अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन सभी समस्याओं को ही अनुवादक की चुनौतियां कहा जाता है। ये सभी समस्याएं भाषागत. संस्कृतिगत विषय के ज्ञान से संबंधित अथवा अन्य अनेक कारणों से हो सकती हैं।

अनुवादक इस क्रम में सबसे पहले स्रोतपाठ(Original Version) का विस्तृत अध्ययन करते हैं और फिरउसके पश्चात पाठ का विश्लेषण तथा अंततः अंतरण यानि भाषांतरण(translation) किया जाता है।

इतनी सब सावधानियां बरतने के बावजूद भी अनुवादक से अनेक त्रुटियां(mistakes/ कमियां) छूट जाती हैं जो संभवतः स्वाभाविक भी है। ऐसी स्थिति में मुद्रण(printing) से पूर्व अनूदित पाठ(translates Version) को फिर से पढ़ा तथा आवश्यकता पड़ने पर सुधारा भी जाता है। इसी प्रक्रिया को पुनरीक्षण कहा जाता है।

पुनरीक्षण का यह कार्य स्वयं अनुवादक अथवा किसी अन्य व्यक्ति अथवा दोनों का एक समूह भी कर सकता है। पुनरीक्षण कार्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण है निष्ठासमर्पण एवं तटस्थता पाठ से स्वयं को पूरी तरह तटस्थ रखकर उसका पुनः पठन तथा पुनरीक्षण किया जा सकता है।

 

पुनरीक्षण की प्रक्रिया

पुनरीक्षण की प्रक्रिया भी अनुवाद की प्रक्रिया से मिलती जुलती है पुनरीक्षक सर्वप्रथम मूल पाठ(Original) का आद्योपांत(संपूर्ण) अध्ययन करते हैं। इसके बाद मूल पाठ(Original) तथा अनूदित पाठ(Translated Version) को एक साथ रखकर पढ़ा जाता है। एक साथ पढ़ने के इस क्रम में पुनरीक्षक मूल और अनूदित पाठ में मिलान करते चलते हैं।

अनुवाद प्रक्रिया में इसे विश्लेषण कहा जाता है। विश्लेषण की इस प्रक्रिया के तहत पुनरीक्षक अपनी समझ के अनुसार त्रुटियों(कमियां) को रेखांकित कर लेते हैं। ये त्रुटियां विभिन्न प्रकार की हो सकती हैं जैसे पाठ के कथ्य के स्तर परभाषायी - स्तर पर तथा शैलीगत आधार पर पुनरीक्षक इन त्रुटियों को रेखांकित करते समय कागज़ के हाशिये पर उन शब्दों या प्रयुक्तियों के स्थान पर बेहतर प्रयुक्तियां लिखते चलते हैं।

इस तरह क्रमवार पूरे पाठ में सुधार कर लिया जाता है त्रुटिसुधार की यह प्रक्रिया संपन्न हो जाने पर पुनरीक्षक वाक्यों तथा प्रयोग के आधार पर उसका पठन करके देखते हैं। यह पठन इस आधार पर भी देखा जाता है कि लक्ष्य भाषा की भाषा और संस्कृति के अनुसार अनूदित पाठ संप्रेषित हो पा रहा है या नहीं।

पुनरीक्षक का यह दायित्व बनता है कि वे केवल त्रुटिगत शब्दों के स्थान पर बेहतर या नए शब्द मात्र न रख दें अपितु यह भी देखें कि लक्ष्यभाषा की संस्कृति में ये शब्द ठीक से संप्रेषित भी हो पा रहे हैं या नहीं। साथ हीअनूदित पाठ पढ़ते हुए कोई असुविधा तथा असहजता तो नहीं हो रही।

 

अनुवाद में अनुवादक के गुण

 

1. स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा का आधिकारिक ज्ञान- अनुवाद को स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा की प्रकृतिव्याकरणिक व्यवस्थाशैलीतथा अनुप्रयोगात्मकता का आधिकारिक ज्ञान होना चाहिए।

 

2. जागरूकता सफलता का मूल मंत्र- अनुवादक को अद्यतन और अधुनातन खोजोंपरिवर्तनोंजानकारियों तथा उपलब्धियों का ज्ञान बनाते रहना चाहिए। यह सतत् अध्ययनशीलता सेसम-सामयिक जानकारियों से तथा सूचना तंत्र के माध्यम से ही संभव हो सकता है। जागरूकता अनुवादक की सफलता का मूल मंत्र है।

 

3. श्रमसाधक - अनुवादक धैर्यवान्लगनशील निष्ठावानविवेकवान तथा अथक श्रमसाधक होना चाहिए।

 

4. अनुवादक अन्तिम मुकाम तक अनुवाद को थैंकलैस जॉब न मानकर जनहितसमाजहितराष्ट्रहित तथा विश्वहित का कार्य मानकर उसे अंतिम मुकाम तक पहुँचाने वाला होना चाहिए।

 

5. प्रशिक्षण लेने की आवश्यकता- यदि औपचारिक प्रशिक्षण संभव हो तो को कलाविज्ञानशिल्पतथा शास्त्र के रूप में समझ सीख लेना चाहिए। अनुवाद

 

6. व्यावहार सापेक्ष विधा- अनुवाद केवल सिद्धांत जान लेने से नहीं आ जाता। अनुवाद तो व्यवहार सापेक्ष विधा है। करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान के मूल मंत्र को गाँठ में बाँधकर अनुवाद के मैदान में उतरना चाहिए। इसे परकाया प्रवेश की साधना कहा जाता है।

 

7. अनुवाद के उपकरणों की जानकारी जरूरी- अनुवादक को अनुवाद के उपकरणों कीकोशों की पारिभाषिक शब्दावली कीथिसॉरिसविभिन्न शब्दावलियों की उपलब्धिकम्प्यूटर अनुवाद की अवधारणा और सीमाओं एवं शक्तियों की जानकारी अद्यतन होनी चाहिए।

 

8. शब्द निर्माण प्रक्रिया की जानकारी आवश्यक- नए शब्दों के आगमनगठनप्रयोग अनुप्रयोगशब्द निर्माण की प्रक्रिया तथा आवश्यकता से भी अनुवादक से भी अनुवादक को अवगत होना चाहिए।ss

 

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