4th Semester
2nd Year
Hindi A Unit-1 Chapter 1
हिंदी गद्य का उद्भव और विकास
1.
खड़ी बोली का उद्भव और विकास
Q1.
खड़ी बोली क्या है?
खड़ी
बोली हिंदी भाषा का वह रूप है जिसमें हिंदी के साथ साथ संस्कृत भाषा के शब्दों का मेल
मिला कर बोला जाता है।
अर्थात
हिंदी भाषा में संस्कृत भाषा के बीच शब्दों की उपलब्धता होती है खड़ी बोली कहलाती है।
इसी
तरह उर्दू भाषा में फारसी और अरबी भाषा के शब्दों को मिलाकर बोला जाता है।
खड़ी
बोली का एक तात्पर्य उस भाषा से भी है जिसमें ब्रजभाषा और अवधी भाषा की कोई भी छाप
ना हो।
खड़ी
बोली निम्नलिखित स्थानों के ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाती है- मेरठ, बिजनौर, मुजफ्फरनगर,
सहारनपुर, देहरादून के मैदानी भाग, अम्बाला, कलसिया और पटियाला के पूर्वी भाग, रामपुर
और मुरादाबाद।
इतिहास
में खड़ी बोली के कुछ पद चिन्ह:-
कई
इतिहासकारों का कहना है कि खड़ी बोली का विकास अंग्रेजों के भारत में आने के बाद हुआ
परंतु ऐसे कई ग्रंथ मिलते हैं जिनसे यह पता चलता है कि खड़ी बोली का विकास अंग्रेजों
के आने से पहले ही हो चुका था।
नाथ
- सिद्धों और निरंजनी संप्रदाय के साधुओं से प्राप्त कई रचनाओं में खड़ी बोली गद्य
के प्रारंभिक रूप को आँकने का प्रयास हुआ है । इस दृष्टि से कुछ विद्वान् गोरखनाथ के
' सिष्ट प्रमाण ' जैसे ग्रन्थों में गद्य के प्रारम्भिक रूप को स्वीकार करते हैं ।
' महादेव गोरखगुष्टि ' , ' अभै मात्रा जोग ' आदि ग्रन्थों में खड़ी बोली के शब्दों
और शैली को देखा जा सकता है ।
13वीं
शताब्दी में रचित कई ग्रंथों में खड़ी बोली के लक्षण मिलते हैं परंतु इससे पहले भी
खड़ी बोली के लक्षण कुछ और ग्रंथों में मिलते हैं अर्थात खड़ी बोली का विकास फिर भी
शताब्दी से पहले ही होना शुरू हो चुका था।
तदनन्तर
संवत् 1768 में लिखा हुआ रामप्रसाद निरंजनी का , ' भाषा योग - वशिष्ठ ' ग्रंथ मिलता
है जिसकी भाषा ‘ साफ - सुथरी खड़ी बोली ' है ।
तथा
इन सभी ग्रंथों को देखने के बाद रामचंद्र शुक्ल इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि लल्लूलाल
से 62 वर्ष पहले ही खड़ी बोली का विकास हो मैं शुरू हो गया था।
इसके
पश्चात् सन् 1766 ई ० में दौलतराम जैन ने रविषेणाचार्य कृत ' पद्मपुराण ' का भाषानुवाद
प्रस्तुत किया । इसकी भाषा का नमूना इस प्रकार है : कैसे हैं श्रीराम , लक्ष्मी पर आलिंगित हैं , हृदय जिनका और प्रफुल्लित है
। मुख रूपी कमल जिनका महापुण्याधिकारी है , महाबुद्धिमान् है ऐसे जो श्री रामचन्द्र
उनका चरित्र श्री गदाधरदेव ही किंचित् मात्र कहने को समर्थ है । ' इस विवरण से
स्पष्ट है कि खड़ी बोली का गद्य प्राचीन काल से ही स्वाभाविक रूप से ही जनता के बीच
विकसित होता रहा है।
यह
कहना ठीक नहीं होगा कि अंग्रेजों और मुसलमानों के आने के बाद ही खड़ी बोली का विकास
हुआ परंतु उनके आने के बाद खड़ी बोली के विकास में तेजी आई।
फोर्ट
विलियम कॉलेज
अट्ठारह
सौ ईसवी में कोलकाता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की गई जिसमें हिंदी लेखन के
साथ-साथ संस्कृत अरबी फारसी भाषा के लेखन कार्य को आरंभ किया गया।
1.
गिलक्राइस्ट
हिन्दुस्तानी के अध्यापक के रूप में नियुक्त हुए । उन्होंने हिन्दुस्तानी के अंतर्गत
उर्दू को विशेष महत्त्व दिया
2.
गिलक्राइस्ट
के बाद विलियम क्राइस ने उर्दू भाषा के स्थान पर हिंदी भाषा को महत्व दिया था उसके
लेखन को आगे बढ़ाया।
3. इस अवधि के दौरान कई लेखक कौन है हिंदी में कई बड़े-बड़े ग्रंथों का निर्माण किया जिनके उदाहरण निम्नलिखित हैं:
● लल्लूलाल ने ' प्रेमसागर ' और सदल मिश्र ने ' नासिकेतोपाख्यान ' लिखा । लल्लूलाल ( सन् 1756-1825 ) ने लगभग 11 कृतियाँ लिखी हैं - पर हिन्दी गद्य की दृष्टि से ' प्रेमसागर ' का ही विशेष महत्त्व है ।
4.
फोर्ट विलियम कॉलेज के बाहर भी खड़ी बोली भाषा का
प्रयोग करके गद्य का विकास होता रहा है।
साधारण
अर्थों में कहे तो फोर्ट विलियम कॉलेज भारत का एक ऐसा कॉलेज था जहां पर हिंदी भाषा
के का लेखन का कार्य आरंभ हुआ।
1.
खड़ी बोली का उद्भव और विकास
ईसाई प्रचारक और खड़ी बोली : ईसाई धर्म के प्रचारकों
ने भी खड़ी बोली के विकास में काफी हद तक अपना योगदान दिया है।
1766 मे पहला ईसाई प्रचार केंद्र कोलकाता के निकट
श्रीरामपुर में स्थापित किया गया था। इसकी स्थापना के बाद वहां पर प्रचार केंद्रों
का एक के बाद एक स्थापना होना शुरू हो गई एक प्रकार से वहां पर ईसाई प्रचार केंद्र
का तांता लग गया था।
1811 में बाइबिल का पहला हिंदी अनुवाद आया तथा इसमें
शुद्ध हिंदी भाषा को अधिक महत्व दिया गया था।
बाइबिल के चौथे संस्करण की भूमिका में स्पष्ट लिखा
गया है कि ' हम हिन्दुस्तानी की उस बोली को
हिन्दुई या हिन्दी समझते हैं जो मुख्यतः संस्कृत से बनी है और मुसलमानों के आने से
पहले सम्पूर्ण हिन्दुस्तान में बोली जाती थी । '
अंग्रेजों को इस बात से स्पष्ट रूप से पता चल चुका
था कि भारत की जनभाषा और तो नहीं हिंदी है।
आर्य समाज ईसाइयों के धर्म : हिंदी भाषा के प्रचार
के लिए आर्य समाज के लोगों ने जनता के बीच बहुत महत्वपूर्ण कार्य को निभाया है।स्वामी
दयानंद ने 1874 में अपना धर्मग्रन्थ ' सत्यार्थ प्रकाश ' लिखा और उनकी प्रेरणा से आर्य
समाज ने हिन्दी के प्रचार में महत्त्वपूर्ण योगदान किया ।
हिंदी गद्य के निर्माण और विकास में दो महत्वपूर्ण
कारण है प्रथम फोर्ट विलियम कॉलेज और द्वितीय धार्मिक संस्थाएं जिनके द्वारा हिंदी
गद्य का विकास बड़ी तेजी से हुआ था।
अंग्रेजों का भारत पर अधिपत्य होने के बाद वह अपनी
भाषा का विस्तार कर रहे थे वही मुस्लिम समुदाय के लोग उर्दू और अरबी फारसी भाषा को
महत्व दे रहे थे और केवल हिंदी भाषा ही जन भाषा थी उस समय भाषा के विकास में केवल तीन
प्रमुख माध्यम ही थे वह निम्नलिखित हैं : ( क ) शिक्षा संस्थाएँ , ( ख ) समाचार - पत्र
, ( ग ) कचहरियाँ ।
शिक्षा संस्थाओं
के लिए अनेक पाठ्य पुस्तकें लिखी गई । इसके अतिरिक्त 1803 ई . में सरकार की ओर से यह
घोषणा हुई कि सब इश्तहारनामे नागरी भाषा और लिपि में लगाये जायें तो इससे भी कचहरियों
से फारसी और उर्दू का प्रभाव खत्म हुआ और अदालती काम देश की प्रचलित भाषा में होने
लगा ।
इसके बाद प्रेस की स्थापना हुई जिसके बाद कई प्रकार
के लेखन कार्य आरंभ हुए :
- ●1826 ई ० में जुगलकिशोर सुकुल के सम्पादन में हिन्दी का पहला पत्र ' उद्दत मार्तंड ' प्रकाशित हुआ ।
- ●इसके बाद ' बंगदूत ' ( 1829 )
- ● ' जगत् दीपक भास्कर ' ( 1846 )
- ●' बनारस अखबार ' ( 1850 )
- ● ' सुधाकर ' ( 1850 ) प्रकाशित हुए ।
- ●1854 ई ० में हिन्दी का पहला दैनिक ' समाचार सुधा वर्णन ' कलकत्ते से प्रकाशित हुआ ।
प्रेस के पत्र लेखन के कार्यों के बाद कई प्रकार
के भाषाएं विवाद आरंभ हुए जिसमें उर्दू सहित हिंदी और अन्य भाषाओं पर वाद विवाद होने
शुरू हो गए थे इन विवादों का यह कारण था कि अलग-अलग पत्र अपने भाषा का प्रचार कर रहे
थे।
इन वाद विवाद दो के कारण हिंदी भाषा धीरे-धीरे अपना
विकास कर रही थी।
भारतेन्दु - युग के साथ ही हिन्दी गद्य एक नई भूमि
पर पाँव रखती है ।