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DU SOL NCWEB 5th Semester History (Issues in 20th C World History I ) Unit 1 | बीसवीं सदी अवधारणा और परिभाषाएं | Unit Notes in Hindi | DU SOL EXAM Study

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5th Semester History (Issues in 20th C World History I)

Unit – 1      बीसवीं सदी अवधारणा और परिभाषाएं:


ऐतिहासिक रूप से 20वीं सदी की शुरुआत सामंतवाद(वह शासन व्यवस्था जिसमें राज्य की भूमि बड़े बड़े जडमींदारों के अधिकार में रहती थी। राजा द्वारा जो जमीन धनी सरदार को दी जाती थी उसे " फ्यूड" अथवा "जागीर" कहा जाता था। धनी सरदार को सामंत या जागीरदार कहते थे। इनके अधीन छोटे जमींदार तथा उसके नीचे किसान एवं अंत मे भूमिहीन अर्धदास होते थे। इस प्रकार राजा से लेकर अर्धदास तक सम्बन्धों की एक कड़ी बनीजिसका आधार भूमि था। इस कड़ी का सबसे महत्वपूर्ण एवं शक्तिशाली व्यक्ति सामंत होता था।) के पतन और पूंजीवाद समाज के उदय और विकास से मानी जाती है|

जिसके बारे में हम कह सकते हैं कि 16वीं सदी के यूरोप से शुरुआत हुईइस ऐतिहासिक क्रम में औद्योगिक क्रांति और फ्रांस की क्रांति जिन्होंने आधुनिक विश्व को एक आयाम दिया निर्णायक घटनाक्रम के रूप में प्रदर्शित होती है|

19वीं सदी में पूंजीवादी औद्योगिकरण उत्पादन का प्रबल साधन बन गया और राष्ट्रवाद तथा राज्य राजनीति की प्रमुख विशेषता के रूप में उभरेइसीलिए हम कह सकते हैं कि 20वीं सदी का विश्व पूंजीवादी औद्योगिकरण और इससे जुड़े हुए सभी सामाजिक और राजनीतिक शाखा युक्त घटनाक्रम की देन है|

पूंजीवादी औद्योगिकीकरण: 20वीं सदी में विश्व दो भागों में अर्थात उन्नत देश और उन्नतशील देश में बट गया थासाथ ही ऐसे देश जिनके पास कुछ नहीं था अस्तित्व में आए थेपूंजीवादी औद्योगिकीकरण परिणाम स्वरूप तीव्र गति से आर्थिक प्रगति हुई यह कुछ समाजों के पिछड़ेपन और समाज में रहने वाले बहुसंख्यक लोगों के पिछड़ेपन का कारण बना|

उपनिवेशवाद(किसी एक भौगोलिक क्षेत्र के लोगों द्वारा किसी दूसरे भौगोलिक क्षेत्र में उपनिवेश (कॉलोनी) स्थापित करना और यह मान्यता रखना कि यह एक अच्छा काम हैउपनिवेशवाद (Colonialism) कहलाता है।) और वर्ग में भेद इन असमानता के आयाम है|

पूंजीवाद में एक सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को जन्म दियाइसे संपत्ति के नीचे स्वामित्व से परिभाषित किया गयाप्रथम उत्पादन के साधन जैसे भूमि कारखाने कच्चे माल यह सभी निजी स्वामित्व के हैं और नियंत्रित किए जाते हैं|

बिक्री और लाभ के लिए उत्पादन होता है ना कि उत्पादक के द्वारा उपयोग के लिए होता हैजो कुछ उत्पादित होता है वह सामाजिक वस्तु कही जाती है अर्थात बिक्री और लाभ कमाने के लिए वस्तुओं का निर्माण किया जाता है तथा अपने समाज में वितरण किया जाता हैउत्पादन की हुई वस्तु का मूल्य पूंजीपति द्वारा रखा जाता है क्योंकि जिसके पास साधन है वह इससे लाभ कमाता है ना कि वह जो उत्पादन के हेतु परिश्रम करते हैं|

दूसरे शब्दों में स्वामी (मालिक) के आर्थिक लाभ के लिए ही वस्तुओं का उत्पादनवितरण और विनिमय के साधन स्वामी वर्ग द्वारा ही निर्धारित किए जाते हैंलाभ स्वामी को प्राप्त होता है अथवा नई तकनीक और उद्योगों में निवेश किया जाता है|

 

 

1. उत्पादन और विनिमय के साधन के निजी स्वामित्व,

2. बिक्री के लिए उत्पादन और उपयोग के स्थान पर उसका आर्थिक लाभ,

3. ऐसे लोग जिनके पास उत्पादन के साधन के नाम पर कुछ नहीं हैऐसे लोग बहुत बड़ी संख्या में उपलब्ध हैऐसे लोगों को रोजगार प्राप्त करने के लिए श्रम के तौर पर कार्य करना पड़ता हैऐसे लोग अपने जीवन यापन के लिए अपने स्वयं को वस्तु के तौर पर  बेचने के लिए बाध्य हो जाते हैं|

5. पंजीवादी औद्योगिकरण के लिए बाजार समाज का केंद्र बिंदु बन जाता हैबाजार के माध्यम से वस्तु को बेचा या खरीदा जा सकता हैमांग और पूर्ति के नियम के द्वारा ही सभी वस्तु का मूल्य निर्धारित किया जाता है |

6. स्वामित्व के कारण स्वामियों के पास अंतिम निर्णायक अधिकार होता है और श्रमिक एवं अन्य कामगार अपने संगठन या ट्रेड यूनियन और हड़ताल आदि के माध्यम से अपनी सामूहिक शक्ति का उपयोग कर सकते हैं|

7. विद्वानों का मानना है कि स्वामी को लाभ की प्राप्ति श्रमिकों के श्रम के शोषण से होती है अर्थात श्रमिक और कारखाने के स्वामी के बीच समझौते वाले संबंध में ऐसा महान विनिमय क्योंकि श्रमिकों को चेतना भी वेतन दिया जाता था उससे अधिक यह उत्पादन कर देते थेपूंजीवाद के प्रति की गई सेवा और वस्तुओं के मूल्य से वेतन कम होते हैंश्रमिकों को वेतन उनके मजबूरी के आधार पर दिया जाता है ना कि वस्तु का बाजार में भेजने के बाद हुए धन की प्राप्ति के आधार पर|

 

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