5th Semester History (Issues in 20th C World History I) Unit 5 C संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना | 5th Sem DU SOL Exam

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5th Semester History (Issues in 20th C World History I)

Unit 5 C

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना

संयुक्त राष्ट्र संघ एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के निर्माण का विश्व का दूसरा प्रयास था। राष्ट्र संघ की असफलता ने एक ऐसे नये संगठन की स्थापना के विचार को जन्म दिया जो अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को अधिक समतापूर्ण व न्यायोचित बनाने में केन्द्रीय भूमिका अदा कर सके। यह विचार द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उभरा तथा राष्ट्रमंडल सदस्यों तथा यूरोपीय निर्वासित सरकारों द्वारा 12 जून, 1941 को लंदन में हस्ताक्षरित अंतर-मैत्री उद्घोषणा में पहली बार सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्त हुआ।

इस उद्घोषणा के अंतर्गत एक स्वतंत्र विश्व के निर्माण हेतु कार्य करने का आह्वान किया गयाजिसमें लोग शांति व सुरक्षा के साथ रह सकें। इस घोषणा के उपरांत अटलांटिक चार्टर 14 अगस्त, 1941 पर हस्ताक्षर किये गये। इस चार्टर को संयुक्त राष्ट्र के जन्म का सूचक माना जाता है। इस चार्टर पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल तथा अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट द्वारा अटलांटिक महासागर में मौजूद एक युद्धपोत पर हस्ताक्षर किये गये थे।

जनवरी, 1942 को वाशिंगटन में अटलांटिक चार्टर का समर्थन करने वाले 26 देशों ने संयुक्त राष्ट्र की घोषणा पर हस्ताक्षर किये।


25 अप्रैल, 1945 को सेन फ्रांसिस्को में आयोजित इस सम्मेलन को सभी सम्मेलनों की समाप्ति करने वाला सम्मेलन माना जाता है। जहां नये संगठन का संविधान तैयार किया गया। 26 जून, 1945 की सभी 50 देशों ने चार्टर पर हस्ताक्षर किये। पोलैंड सम्मेलन में हिस्सा नहीं ले सका था किंतु थोड़े समय बाद चार्टर पर हस्ताक्षर करके वह भी संस्थापक सदस्यों की सूची में शामिल हो गया। लिखित अनुमोदनों की अपेक्षित संख्या अमेरिकी विदेश विभाग में जमा हो जाने के बाद 24 अक्टूबर, 1945 से चार्टर प्रभावी हो गया। 31 दिसंबर, 1945 तक सभी हस्ताक्षरकर्ता देश चार्टर का अनुमोदन कर चुके थे। 24 अक्टूबर को प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।  


संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का वैश्विक मानचित्र


संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय

 


संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के कारण

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के प्रमुख कारण है -

 

1. शांति एवं सुरक्षा- द्वितीय विश्व युद्ध सन् 1939 से 1945 तक चला इस दौरान होने वाले विध्वंस से तथा इसके पूर्व प्रथम विश्व युद्ध के विनाश से दुनिया के देश तंग आ चुके थे। अत: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही ऐसा प्रयास किये जाने लगे थे कि भविष्य में इस प्रकार के युद्धों को रोकने एवं शांति सुरक्षा बनाये रखने की दिशा में कोई सार्थक प्रयास किया जाना चाहिए।

 

 

2. द्वितीय विश्व युद्ध में होने वाला विध्वंस- द्वितीय विश्व युद्ध में करोड़ों लोग मारे गये थेंअरबों की सपंत्ति नष्ट हो गई थी। देशों ने अपार धन संपदा हथियारों के निर्माण पर खर्च की थी। लोग यह सोचने पर मजबूर हो गये कि इसी शक्ति आरै धन को यदि रचनात्मक कार्यों पर खर्च किया जायतो एक तरफ विध्वंस को रोका जा सकता है एवं दूसरी तरफ वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास भी किया जा सकता है।

 

3. नाभिकीय युद्ध का भय- द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के दो नगरों पर परमाणु बम का प्रयोग किया गयाजिसके कारण हुए विनाश को पूरी दुनिया ने देखा और यह महसूस किया कि यदि भविष्य में मानवता की रक्षा करनी है तो नाभिकीय युद्ध को रोकना होगा ।

 

4. राष्ट्र संघ की असफलता- राष्ट्र संघ अपनी अंतर्निहित कमजोरियों के कारण द्वितीय विश्व युद्ध को रोकने में असफल रहा। अत: यह आवश्यकता महसूस की गई की पुरानी गल्तियों को सुधारते हुयें भविष्य में युद्धों को रोकने हेतु सामूहिक प्रयास किया जाना चाहिये।

 

5. सामाजिक एवं आर्थिक विकास का उद्देश्य- विकसित एवं औद्योगीकृत देशों ने उपनिवेशों का लंबे समय से शोषण किया थाअत: इन उपनिवेशों के लोगों की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को सुधारने हेतु अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता थी। इस उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ एक श्रेष्ठ मंच का कार्य कर सकता था।

 

6. सामूहिक सुरक्षा की भावना- संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से छोटे एवं नवोदित राष्ट्रों को सुरक्षा उपलब्ध कराकरउन्हें बडे़ राष्ट्रों के आक्रमणों एवं अत्याचारों से बचाया जा सकता था।

संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख उद्देश्य है -

1.   मानव जाति की सन्तति को युद्ध की विभीषिका से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को स्थायी रूप प्रदान करना और इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु शान्ति-विरोधी तत्वों को दण्डित करना। 

2.   समान अधिकार तथा आत्म-निर्णय के सिद्धांतों को मान्यता देते हुए इन सिद्धांतों को आधार पर के आधार पर विभिन्न राष्ट्रों के मध्य संबंधों एवं सहयागे में वृद्धि करने के लिए उचित उपाय करना। 

3.   विश्व की आर्थिकसामाजिक और सांस्कृतिक आदि मानवीय समस्याओं के समाधान हेतु अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना। 

4.   शान्ति पूर्ण उपायों से अन्त राष्ट्रीय विवादों को सुलझाना । 

5.   इस सामान्य उदे्श्यों की पूर्ति में लगें हुए विभिन्न राष्ट्रों के कार्यों में समन्वयकारी केन्द्र के रूप में कार्य करना । 



संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख सिद्धांत है -

1.   संघ के सभी सदस्य- राष्ट्र प्रभुत्व सम्पन्न और समान हैं। 

2.   संघ के सभी सदस्य- राष्ट्रसंघ के घोषणा-पत्र में वर्णित अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों का निर्वाह निष्ठापूर्वक और पूरी ईमानदारी से करेंगे। 

3.   संघ के सभी सदस्य- राष्ट्रअंतरराष्ट्रीय संबन्धो के संचालन में किसी राज्य की अखण्डता तथा राजनीतिक स्वतन्त्रता के विरूद्ध धमकी अथवा शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे। 

4.   संघ के सभी सदस्य- राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय विवाद का समाधान शान्तिपूर्ण उपायों से करेंगेजिससे विश्व-शान्तिसुरक्षा एवं न्याय की रक्षा हो सके।

5.   संघ के सभी सदस्य- राष्ट्रसंघ के घोषणा-पत्र में वर्णित संघ के सभी कार्यों में संघ को सहायता प्रदान करेगें तथा वे किसी भी एसे राज्यों को किसी भी प्रकार की सहायता प्रदान नहीं करेंगेजिसके विरूद्ध संघ द्वारा कोई कार्यवाही की जा रही हो। 

6.   संघ उन राष्ट्रों से भीजो संघ के सदस्य नहीं हैंघोषणा-पत्र में वर्णित अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा वाले सिद्धांतों का पालन कराने प्रयास करेगा।

7.   संघ किसी सदस्य- राष्ट्र के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। 

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