DU SOL NCWEB 3rd Semester History 1200-1700 | Unit 1 Part-4 इक्ता प्रणाली | Unit Notes in Hindi

DU SOL NCWEB 3rd Semester / 2nd Year
History 1200-1700
Unit 1 -  दिल्ली सल्तनत की स्थापना Part-4

प्रशासन और इक्ता प्रणाली

इक्ता प्रणाली (Iqta System) 

जिस प्रकार आज का भारत राज्य, जिला, तहसील, थाना, ग्राम आदि क्षेत्रीय इकाइयों में बटा है, ठीक इसी प्रकार दिल्ली सल्तनत भी निम्न क्षेत्रीय इकाइयों में विभक्त थी  ग्राम- परगना शिक इक्ता सल्तनत | 

इक़्ता प्रणाली के अंतर्गत सुल्तानों ने अपनी सल्तनत की सैनिक तथा भूराजस्व व्यवस्था का संगठन किया था| इक़्ता वह क्षेत्रीय इकाई थी जिसमे सल्तनत को बांटा गया था| ये इक्ताऐं सामंतो तथा बड़े सैन्य अधिकारियो को वेतन के स्थान पर दे दी जाती थीं| किसी इक्ता से जो भी भू-राजस्व या कर आता था वह सामंत या सैनिक अधिकारी का वेतन होता था|

अधिकतर क्षेत्र सीधे सुल्तान के नियंत्रण में नहीं होते थे बल्कि ये इस सामंतों या इक्तेदारों के नियंत्रण में रहते थे| जब-जब सुल्तानों ने अपनी पकड़ इन इक्तेदारों पर ढीली की तब-तब इक़्तेदार विद्रोह कर देते थे|

इक्तेदारों का किसानों के खेतों, उनकी धन सम्पदा आदि पर कोई अधिकार नहीं होता था| वह केवल राजस्व वसूल करने का अधिकार रखता था|

सैनिक और अन्य अधिकारीयों के खर्चे को पूरा करने के लिए अब्बासी खलीफाओं ने इस प्रणाली की शुरुआत की थी| इनसे प्रेरणा लेकर गजनी, ख़ुरासान, तथा तुर्क शासकों ने भी इस प्रणाली को अपना लिया| Link

 

दिल्ली सल्तनत का प्रांतीय प्रशासन

  • दिल्ली सल्तनत इक़्ताओं (प्रान्त) में विभक्त थी| इक्ता का प्रधान वली, मुक्ति अथवा इक्तादार कहलाता था
  • इक्ताएँ जिलों में विभक्त थी जो शिक कहलाते थे| शिक का प्रधान शिकदार होता था| इक्ता को जिलों में विभाजित करने का काम बलबन के समय में किया गया था|

  • शिक परगनों में बंटा होता था| परगने में आमिल और मुंसिफ दो महत्वपूर्ण अधिकारी हुआ  करते थे
  • शासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होती थी| गांव के मुख्य अधिकारी पटवारी, चौधरी, खुत, मुकद्दम थे जो शासन को लगान वसूल करने में सहायता करते थे| गांव के मुखिया को मुकद्दम कहा जाता था तथा जमींदारों को खूत कहा जाता था|
  • खालसा (केंद्र शासित प्रदेश) के अधिकारी शहना कहलाते थे

  • इक्ता प्रणाली की शुरुआत इल्तुतमिश ने की थीइस प्रणाली के अंतर्गत सैनिकों तथा राज्य के अधिकारियों को वेतन के बदले इक्ता या भूमि दी जाती थी।
  • फ़िरोज़शाह तुगलक के समय में सबसे ज्यादा इक्ताएँ थी

 

इक्ता प्रणाली का विकास

मुहम्मद गोरी द्वारा पेश किए जाने के बाद , पहली बार सुल्तान इल्तुतमिश द्वारा इक्ता प्रणाली को ठीक से पुनर्गठित किया गया था। उन्होंने इक्तादार के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को विस्तार से परिभाषित किया। इस पुनर्गठित प्रणाली के तहत इक्तादार सैनिकों की निश्चित संख्या को बनाए रखने, नियंत्रण में क्षेत्र के प्रशासन की देखभाल करने, राजस्व एकत्र करने और केंद्रीय खजाने में फवाज़ल जमा करने के लिए जिम्मेदार थे।

 

सुल्तान बलबन ने इक्तादारों पर अधिक केंद्रीय नियंत्रण लगाया। उन्होंने प्रत्येक इक्तादार के साथ एक लेखाकार ख्वाजा को उनके द्वारा बनाए गए अभिलेखों के प्रमाणीकरण की जांच करने के लिए नियुक्त किया। बलबन ने इक्तादार को एक इक्ता से दूसरे में स्थानांतरित कर दिया ताकि वे लोगों के साथ कोई संबंध विकसित न कर सकें।

 

सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने खालिसा भूमि का विस्तार करने के लिए दोआब क्षेत्र में छोटे इक्ता की संख्या को समाप्त कर दिया। उसने इक्तादार से राजस्व की माँग बढ़ा दी। एक नया विभाग - दीवान-ए-मुश्तखराज़ इक्तादार के पास रहने वाले राजस्व के बकाया की वसूली के लिए। मोहम्मद बिन तुगलक ने इक्तादार पर केंद्रीय नियंत्रण को और बढ़ा दिया।

 

उसने इक्तादार की आय और व्यय को अलग कर दिया। उन्होंने पूरे राजस्व को केंद्रीय खजाने में जमा करने का आदेश दिया और जहां से उन्हें उनके वेतन और अन्य खर्चों का भुगतान किया गया। फिरोज शाह तुगलक इक्ता के शासनकाल के दौरान , प्रणाली को वंशानुगत घोषित किया गया था। इक्तादार की मृत्यु के बाद उसके पुत्र/दामाद/दास/विधवा को सफल होने दिया गया।

 

लोधी काल के दौरान, फवाज़ल की अवधारणा को समाप्त कर दिया गया था। इक्तादार ने इक्ता से एकत्रित राजस्व को अपने पास रखने की अनुमति दी। यह लोधी में अफगान राजत्व का विस्तार था, जिसमें सुल्तान को बराबरी का प्रथम स्थान दिया गया था। नाम इक्ता परगना और सरकार में बदल गया । छोटी इक्ता को परगना और बड़ी को सरकार कहा जाता है। Link

दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण

  • स्वेच्छाचारी शासन

असीमित शक्तियां अधिकार प्राप्त होने के कारण दिल्ली सल्तनत के शासक स्वेच्छाचारी हो गए थे। इन असीमित शक्तियों एवं अधिकारों का दुरूपयोग करके उन्होंने अनेक ऐसे कार्य किए जिससे दिल्ली सल्तनत बिखर गई। अलाउद्दीन एवं बलबन द्वारा सरदारों की शक्तियों को कुचल दिया गया ऐसे नियम लागू किए गए जो नागरिकों के लिए अहितकारी हुआ करते थे। अतः ऐसे स्वेच्छाचारी शासकों का स्थाई रहना असंभव था और दिल्ली सल्तनत का पतन होना स्वभाविक ही था।

  • विशाल साम्राज्य

दिल्ली सल्तनत ने एक विशाल साम्राज्य का रूप धारण कर लिया था जिसमें लगभग सभी राज्य एवं दक्षिण भारत के दूरस्थ राज्य भी शामिल थे। विशाल साम्राज्य होने के कारण प्रत्येक क्षेत्र से संपर्क स्थापित करने के लिए आवागमन एवं संचार के उचित साधन होने के कारण दिल्ली सल्तनत की सेना को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था और अपने क्षेत्रों से संपर्क स्थापित कर पाना भी दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण था।

  • केंद्रीय दुर्बलता

तुगलक वंश के शासक फिरोज तुगलक की मृत्यु के पश्चात केंद्र की शक्ति अत्यंत दुर्बल हो गई जिससे विभिन्न प्रांतों के सूबेदारों ने दिल्ली सल्तनत पर विद्रोह कर दिया। इन सूबेदारों ने विद्रोह के पश्चात अपने-अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर दिए जिसकी वजह से धीरे-धीरे दिल्ली सल्तनत का विस्तार कम होने लगा। इसके अलावा सुल्तान की मृत्यु होने के पश्चात उत्तराधिकारियों को गद्दी के लिए उन्हें युद्ध का सहारा लेना पड़ता था जिसका परिणाम यह हुआ कि सल्तनत में राजनीतिक स्थायित्व की कमी हो गई जिस वजह से दिल्ली सल्तनत का पतन हो गया।

  • प्रजा के सहयोग का अभाव

प्रजा के सहयोग का अभाव भी दिल्ली सल्तनत के पतन का एक महत्वपूर्ण कारण था क्योंकि प्रजा में अधिकांश व्यक्ति हिन्दू थे और उनकी दृष्टि में मुस्लिम शासक विदेशी थे। दिल्ली सल्तनत द्वारा हिन्दू प्रजा और उनकी धार्मिक आधारों पर गलत मार्ग को अपनाकर उन पर बहुत अत्याचार किए गए और जब भी अत्याचारों से क्रोधित प्रजा को मौका मिलता वे सल्तनत के प्रति विद्रोह कर देते और उन्हें क्षति पहुंचाने का प्रयास करते रहते। इस प्रकार शासक और प्रजा में एकता का भी अभाव रहा जो सल्तनत के पतन का कारण बना।

  • तैमूर द्वारा किया गया आक्रमण

समरकंद के शासक तैमूर लंग ने 1398 . में तुगलक वंश के अंतिम शासक नासिरुद्दीन महमूद को बुरी तरह पराजित करने के बाद दिल्ली पर अधिकार कर लिया था। नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु के पश्चात काबुल के सम्राट बाबर ने दिल्ली सल्तनत को पूरी तरह से समाप्त करके मुगल साम्राज्य की नींव रखी दिल्ली सल्तनत का पतन हो गया।

  • जजिया कर लागू करना

तुगलक वंश के शासक मुहम्मद तुगलक द्वारा ब्राह्मणों एवं गैर मुस्लिमों पर धार्मिक कर लगा दिया गया। जिससे हिन्दू मुस्लिम सुल्तान के विरुद्ध हो गए और यही वजह रही की शासकों को प्रजा का सहयोग मिलने की अपेक्षा वे उनके विरोध में खड़े हो गए जो सल्तनत के पतन का एक प्रमुख कारण रहा।

  • स्थाई सेना समाप्त करना

फिरोज तुगलक द्वारा स्थाई सेना को समाप्त करके सामंती सेना का गठन किया गया और सैनिकों के वेतन समाप्त करके ग्रामीण क्षेत्रों मे अनुदान दिया जाने लगा। सैनिकों की भूमि वंशानुगत कर दी गई जिससे उन्हें किसी प्रकार का भय होने की वजह से सैनिक आलसी होने लगे। भूमि पर ही अधिकांश समय व्यतीत करना सैनिकों की आदत हो गई थी जिससे उनकी सेना धीरे-धीरे शिथिल हो गई। शिथिल सेना का लाभ विदेशी आक्रमणकारियों ने उठाया, अतः सैनिकों की स्थिति का कारण भी दिल्ली सल्तनत के पतन का कारण था।

  • लोदी सुल्तानों का दायित्व

दिल्ली सल्तनत के पतन का प्रमुख कारण लोदी वंश के शासक बहलोल लोदी के समय से होना प्रारम्भ हो गया था। इब्राहिम लोदी अप्रैल 1526 . में पानीपत के युद्ध में बाबर से बुरी तरह पराजित हो गया और युद्धभूमि में ही वीरगति को प्राप्त हो गया। इस युद्ध के बाद लोदी वंश दिल्ली सल्तनत का अस्तित्व समाप्त हो गया और दिल्ली सल्तनत का पतन हो गया।

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This content is made after reading help book, taking notes from the internet, and the help of some sites. 

 


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