DU SOL NCWEB 3rd Semester History 1200-1700 | Unit 1 Part-3 तुगलक काल | Unit Notes in Hindi

        DU SOL NCWEB 3rd Semester / 2nd Year

History 1200-1700
Unit 1 -  दिल्ली सल्तनत की स्थापना Part-3



 

तुगलक काल:

गयासुद्दीन तुगलक:

·      तुगलक वंश के संस्थापक गयासुद्दीन तुगलक थे|

·      गयासुद्दीन ने अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा उठाए गए कदमों पर अपने कार्य से बदलाव कियागयासुद्दीन किसानों के साथ नरमी के साथ बर्ताव करता था|

·      राजस्व में हो रही हेरा फेरी पर भी कम ध्यान दिया गयासुद्दीन तुगलक ने|

·      दिल्ली की आर्थिक व्यवस्था में उन्नति लाने के लिए गयासुद्दीन तुगलक ने पुरानी सड़कों की मरम्मत कराईनई सड़के बनवाई और डाक विभाग में सुधार किया|

·      डाक की व्यवस्था के लिए तेज खुले रखे गए जो 12 घंटों में 100 मील तक का सफर तय कर सकते थे|

·      न्याय विभाग और कानून में बदलाव किए गए|

·      सुल्तान ने शराब बनाने और बेचने दोनों पर सख्त मनाही की थी|

·      हुलिया और दाग प्रथा को सख्ती के साथ लागू किया|


मोहम्मद बिन तुगलक 1325- 1351 प्रशासनिक सुधार:

मोहम्मद बिन तुगलक अपने समय का आदित्य बहुमुखी विद्वान था|

योजनाएं-

1. दोआब में राजस्व वृद्धि :

·      अलाउद्दीन खिलजी के बाद मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत का दूसरा शासक था जिसने भू राजस्व पर ध्यान दिया था |

·      अलाउद्दीन खिलजी और मोहम्मद बिन तुगलक दोनों ने ही भूमि संबंधित नीतियों में विकास किया जो मुगल शासन में विकसित हुआ|

·      सबसे पहले मोहम्मद बिन तुगलक ने सूबे की आय-व्यय का हिसाब रखने के लिए एक रजिस्टर तैयार कराया और सभी सूबेदार को इस संबंध में अपने अपने सूबे का हिसाब भेजने का आदेश दिया गया|

·      लगान वाले कर्मचारियों के कार्य के निरीक्षण के लिए शताधिकारी नामक ने अधिकारी की नियुक्ति की गई जो 100 गांवों के लगान वसूलने वाले अधिकारियों के कार्य पर नियंत्रण रखता था|

·      मोहम्मद बिन तुगलक राजस्व संबंधित सबसे महत्वपूर्ण कार्य किया था कि दोआब मैं कर की वृद्धि कर दी थी |

·      दोआब उपजाऊ प्रदेश था इसीलिए सुल्तान ने आर्थिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए इस क्षेत्र में कर को बढ़ा दिया थालगान में 1/10 से 1/20 तक की वृद्धि की गई इसके अतिरिक्त नए कर लगाए गए और वसूल किया गया|

·      तारीख-ए-मुबारकशाही का विवरण स्वीकार किया जाए तो इसका अर्थ है कि मोहम्मद बिन तुगलक की नीति अलाउद्दीन खिलजी के समान ही थी सीमित क्षेत्रों में लागू की गई थी|

·      राजस्व अधिकारियों ने निश्चित राशि को जबरदस्ती का फूल करने का प्रयास किया इस अत्याचार से घबराकर किसानों ने अपनी खरीफ फसल में आग लगा दी और खेती करना छोड़ दिया|

·      शक्तिशाली जमींदारों ने लगान देने से इंकार कर दिया किसानों ने राजस्व अधिकारी और सैनिकों की हत्या कर दी|

2. राजधानी परिवर्तन:

·      मोहम्मद बिन तुगलक आर्थिक विवादास्पद राजधानी का परिवर्तन था|

·      1326-27 ईस्वी में इसने राजधानी दिल्ली से देवगिरि दौलताबाद परिवर्तन करने का निर्णय किया और इसका नाम कुतुबुल इस्लाम रखा|

·      राजधानी परिवर्तन के विषय में जियाउद्दीन बरनी लिखते हैं कि- " नगर इतनी बुरी तरह उजड़ गया कि नगर की इमारतें महल और आसपास के इलाकों में एक बिल्ली कुत्ता तक नहीं बचा| "

·      इब्नबतूता ने कहा कि एक दूसरे को घसीट कर दिल्ली से दौलताबाद लाया गया एक लंगड़े को पत्थर फेंकने के यंत्र द्वारा यहां फेंका गया|

राजधानी परिवर्तन के कारण:

·      दिल्ली के सुल्तान में प्रथम सुल्तान था जिसने उत्तर दक्षिण भारत के मध्य प्रशासनिक और सांस्कृतिक एकता स्थापित करने का प्रयत्न किया|

·      देवगिरि दौलताबाद को संभावित राजधानी बनाने मैं उसका मूल कारण ही भी था|

राजधानी परिवर्तन के परिणाम:

·      मतलब की राजधानी परिवर्तन की योजना पूरी तरह असफल रही|

·      वीदर पहुंचने पर प्लेग की महामारी फैल गई जिससे सुल्तान के कई सैनिक मर गएमुहम्मद बिन तुगलक स्वयं भी बीमार पड़ गया और दौलताबाद वापस आ गया

·      इस घटना के बाद सुल्तान की मृत्यु की अफवाह फैल गई फल स्वरूप स्थिति का लाभ उठाते हुए दक्षिण के मुख्य राज्य माबर द्वारसमुद्र और वारगल दिल्ली सल्तनत से अलग हो गए|

·      दिल्ली से दौलताबाद राजधानी परिवर्तन का एक दूरगामी प्रभाव यह पढ़ा की बहुत सारे सूफी और उलेमाओं ने दोलताबाद में ही रुकने का निर्णय किया

·      फल स्वरुप दौलताबाद इस्लामी शिक्षा और ज्ञान का केंद्र बन गया,जिससे बहमनी सुल्तान लाभांवित हुए|

 

राजधानी परिवर्तन के लिए विद्वानों के मत:

·      बरनी के अनुसार– सुल्तान दक्षिण पर प्रभावशाली प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित करना चाहता था क्योंकि दौलताबाद देवगिरी साम्राज्य के केंद्र में स्थित था और गुजरात लखनौतीसतगांव ,सुनारगांवतेलंगमाबरद्वारसमुद्र और कंपिल से उसकी दूरी समान थीइसके अतिरिक्त बरनी के अनुसार–नई राजधानी को साम्राज्य के केंद्र में स्थित होने के कारण चुना|

·      बरनी के अनुसार– नगर( दिल्ली) इतनी पूरी तरह उजड़ गया कि नगर की इमारतोंमहल और आसपास के इलाकों में एक बिल्ली और कुत्ता तक नहीं बचा|

·      इब्नबतूता के अनुसार– सुल्तान को दिल्ली के नागरिक असम्मानपूर्ण पत्र लिखते थे इसीलिए उन्हें दंड देने के लिए राजधानी देवगिरी परिवर्तित करने का निर्णय लिया

·      इब्नबतूता ने लिखा है कि– राजधानी परिवर्तन की आज्ञा देने के बाद उसने समस्त दिल्ली की तलाशी लेने की आज्ञा दी तो उसे मात्र एक अंधा और एक लंगड़ा व्यक्ति मिला

 

सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन (1329-30 ई.)

अपनी तीसरी योजना के दौरान उसने फरिश्ता के अनुसार ‘पीतल’ तथा बरनी के अनुसार ‘तांबा’ धातुओं की सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन कियाजिनका मूल्य चांदी के टंके के बराबर रखा गया .

मगर इस योजना में भी सुल्तान को असफलता मिली व राज्य की अत्यधिक आर्थिक क्षति का सामना करना पड़ा.

 

खुरासान एवं कराचिल का अभियान

चौथी योजना के अन्तर्गत मुहम्मद तुग़लक़ के खुरासान एवं कराचिल विजय अभियान का उल्लेख किया जाता है। खुरासन को जीतने के लिए मुहम्मद तुग़लक़ ने 370,000 सैनिकों की विशाल सेना को एक वर्ष का अग्रिम वेतन दे दियापरन्तु राजनीतिक परिवर्तन के कारण दोनों देशों के मध्य समझौता हो गयाजिससे सुल्तान की यह योजना असफल रही और उसे आर्थिक रूप से हानि उठानी पड़ी।

कराचिल अभियान के अन्तर्गत सुल्तान ने खुसरो मलिक के नेतृत्व में एक विशाल सेना को पहाड़ी राज्यों को जीतने के लिए भेजा। उसकी पूरी सेना जंगली रास्तों में भटक गईइब्न बतूता के अनुसार अन्ततः केवल दस अधिकारी ही बचकर वापस आ सके। इस प्रकार मुहम्मद तुग़लक़ की यह योजना भी असफल रही।

सम्भवतः 1328-29 ई. के मध्य मंगोल आक्रमणकारी तरमाशरीन चग़ताई ने एक विशाल सेना के साथ भारत पर आक्रमण कर मुल्तानलाहौर से लेकर दिल्ली तक के प्रदेशों को रौंद डाला। ऐसा माना जाता है किसुल्तान मुहम्मद तुग़लक़ ने मंगोल नेता को घूस देकर वापस कर दिया था ये भी स्म्भ्व है कि मंगोल नेता ने सुल्तान को दिल्ली स्ल्तन्त को खुद ही य्थास्थिति कमज़ोर करने व इसी तरह मंगोल शास्न के लिए ज़्मीन त्यार करने के लिए घूस दी।

उनके बीच जो भी हुआमंगोल नेता के प्रति इस समझोते की नीति के कारण सुल्तान को आलोचना का शिकार बनना पड़ा। ये सही है कि इसके बाद फिर कभी मुहम्मद तुग़लक़ के समय में भारत पर मंगोल आक्रमण नहीं हुआ और ये भी कि अपनी महत्त्वाकांक्षी असफल योजनाओं के कारण मुहम्मद तुग़लक़ को ‘असफलताओं का बादशाह’ कहा जाता है।

 

फिरोज तुगलक:

दिल्ली सल्तनत के इतिहास में फिरोज तुगलक का शासन काल उस समय शुरू हुआ जब तुगलक साम्राज्य के विघटन की प्रक्रिया तेजी पकड़ रही थी|

इस तनावपूर्ण स्थिति में शासन करना बहुत कठिन था फिर भी फिरोज तुगलक ने लंबे समय तक सल्तनत की बागडोर संभाल कर रखी|

फिरोज तुगलक ने लंबे समय तक शासन किया|

प्रशासनिक गतिविधियां:

1.      आर्थिक सुधार: फिरोज शाह तुगलक ने शासनकाल में मुस्लिम जनता की दशा को सुधारने का प्रयत्न किया तथा मोहम्मद तुगलक की नीतियों को छोड़ दिया थावास्तव में फिरोज का शासन मोहम्मद तुगलक के द्वारा किए गए गलत कार्यों को ठीक करना था|

a.    राजस्व: ख्वाजा हिसामुद्दीन जुनैद की अध्यक्षता में राजस्व विभाग का पुनर्गठन किया गया|

b.    कर निर्धारण: इस्लाम के विरुद्ध सभी कर वापस लिए गए और कुरान के अनुसार खिराजखम्‍जजजिया और जकात नामक कर लगाये गये। सिंचाई पर लगाए गए करो मैं भी बदलाव किए थे|

c.     कृषि सुधार: सिंचाई के लिए 150 मील लंबी यमुना नहर 96 मील लंबी सतलज घाघरा नहररिमौर से होजी नहरघाघरा-फिरोजाबाद नहरकुओं का निर्माण करवाया।

2.        सामाजिक सुधार:

a.    दास प्रथाफिरोज तुगलक ने दासों से प्रेम के कारण उनकी ओर भी ध्‍यान दिया। प्रांतीय सूबेदारों तथा अन्‍य अधिकारियों को सुल्‍तान की सेना में दास भेजने का आदेश दिया। करीब 40 हजार दास हरमरा में सुल्‍तान की सेवा करते थे। एक अलग विभाग इनकी देखभाल करता था। सुल्‍तान ने 1200 बाग लगवाए। बहुत से कस्‍बे और नगर आबाद किए। बहुत सी सराएं बनवाई और पुरानी इमारतों की मरम्‍मत करवाई। जो मुसलमान आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण लड़कियों का विवाह नहीं कर सकते थेउन्‍हें आर्थिक सहायता दी गई।

b.    शिक्षा -सुधार : निजामुद्दीन और फरिश्‍ते के अनुसार सुल्‍तान ने 30 महाविद्यालयों की स्‍थापना करवाई। वह विद्वानों को श्रद्धा की दृष्टि से देखता था और उन्‍हें संरक्षण देता था। कई ग्रंथों का फारसी मे अनुवाद करवाया। उसने स्‍वंय अपनी आत्‍म-कथा फफूहार ने फिरोजशाही की रचना की थी। प्रत्‍येक मस्जिद के साथ एक शिक्षण संस्‍था की योजना बनाई। फतबा-ए-जहां दास और तारीखें फिरोजशाही उसी के शासनकाल में लिखी गई। 

c.     मुद्रा व्‍यवस्‍था में सुधार: मुद्रा-प्रणाली में दोष के कारण राजकोष खाली हो गया थाइसलिए उसने मुद्रा में भी सुधार किया। एक अधिकारी के अधीन मुद्रा विभाग कर दिया गया। व्‍यापार की उन्‍नति के लिए छोटे सिक्‍कों को चलाया जिन्‍हें शाशग्‍यानी और बीरब कहा जाता था।

d.    न्‍याय सुधार मामूली से अपराध पर जो कठोर दंड दिए जाते थे बंद कर दिए गए। अपराध के अनुसार सजा दी जाने लगी। प्रांतीय न्‍यायालयों की व्‍यवस्‍था में सुधार किए गए परिणामस्‍वरूप केन्‍द्रीय न्‍यायालय में मुकदमें कम पहुंचने लगे। योग्‍य व्‍यक्तियों को काजी के पद पर नियुक्‍त किया जाने लगा। मुफ्ती विधि की व्‍याख्‍या करता था तथा काजी निर्णय देता था और मुकदमों की अपील स्‍वंय सुल्‍तान सुना करता था। शारीरिक यातनाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

तुष्टीकरण की नीति: प्रोफेसर सतीश चंद्र के अनुसार अमीरों तथा अधिकारियों के प्रति उसकी तुष्टीकरण की नीति के अधीन फिरोज तुगलक ने सार्वजनिक रूप से उन सभी दस्तावेजों को नष्ट कर दिया जिनके आधार पर मोहम्मद बिन तुगलक ने दो आप में कृषि के विस्तार के लिए अधिकारियों को दो करोड़ की रकम दी थी किंतु अधिकांश भाग हजम कर लिया गया था|

फिरोज शाह का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य है यह था कि प्रतिवर्ष या हर तीसरे वर्ष राजस्व निर्धारण करने के स्थान पर अब उसने राजस्व की एक राशि नियत कर दी थी जो उसके संपूर्ण शासनकाल में अपरिवर्तित रही|  इस व्यवस्था से लोगों को बहुत सुविधा मिली|

फिरोज तुगलक ने चुंगी कर माफ कर दिया क्योंकि यह टेक्स शरीयत के कानून के अनुसार नहीं था|

उसने 28 ऐसे करो को लेना बंद करने का आदेश दियाउसने केवल चार कर लगाएं खराज( भूमि पर कर)जकात( केवल मुसलमानों पर ही लगाया गया था)जजिया( उन लोगों पर लगाया गया जो मुसलमान नहीं थे)खुम्स( मुसलमान से ना जो लूट का माल लाते थे उनमें 1/5 भाग राज्य को दिया जाता था)|

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