4th Semester Education (DISCIPLINE) | Unit 7 संज्ञानात्मक विकास का सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत | Chapter Explanation Notes | DU SOL NCWEB

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4th Semester Education (DISCIPLINE)

Understanding Human Learning and Cognition

Unit 7

संज्ञानात्मक विकास का सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत

लिव वाइगोत्सकी (1896-1934) एक रूसी मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंने मनोविज्ञान के क्षेत्र में विकास मनोविज्ञान पर मुख्य कार्य किया। वाइगोत्सकी ने संज्ञानात्मक विकास के विशेष रूप से भाषा और चिंतन पर अधिक कार्य किया।

वाइगोत्सकी के अनुसार भाषा समाज द्वारा दिया गया प्रमुख सांकेतिक उपकरण है जो कि बालक के विकास में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। वाइगोत्सकी, हमारे स्वयं का विकास दूसरों के द्वारा होता है।”

वाइगोत्सकी के अनुसार संज्ञानात्मक विकास पर सामाजिक कारकों (परिवार, समाज, विद्यालय, मित्र मंडली परिवेश) व भाषा का प्रभाव पड़ता है। संस्कृति और भाषा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए इस सिद्धांत को सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार संज्ञानात्मक विकास ‘अंतर वैयक्तिक सामाजिक परिस्थिति’ (कुशल एवं विद्वान व्यक्तियों के साथ अंत:क्रिया) के माध्यम से होता है।

वाइगोत्सकी के अनुसार बालक का विकास समाज के द्वारा अर्थात सामाजिक अंतः क्रिया के द्वारा बालक ज्ञान अर्जन करता है। बालक व्यस्कों तथा समव्यस्कों के साथ परस्पर अंत: क्रिया से सिखता है।

बालक के सामाजिक अंतः क्रिया (Social interaction) के फलस्वरूप उनका संज्ञानात्मक, शारीरिक व सामाजिक विकास होता है। बालक के सामाजिक अंतः क्रिया के द्वारा ही विचार या भाषा का विकास होता है। बालक भाषा का ज्ञान भी सामाजिक अंतः क्रिया के द्वारा ही सीखता है।

वाइगोत्सकी के अनुसार बालक के सीखने को उनके सामाजिक संदर्भ से अलग नहीं किया जा सकता। वाइगोत्सकी अधिगम को एक सामाजिक गतिविधि मानता है। उसके सिद्धांत में विकास के सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषाई पहलू पर अधिक बल दिया गया है।

वाइगोत्सकी ने खेलों पर महत्व देते हुए बताया कि बालक के संज्ञानात्मक, भावात्मक विकास सामाजिक विकास में खेल का महत्वपूर्ण स्थान है।

यही कारण है कि विद्यालयों में शिक्षा के साथ-साथ खेलों पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाता है। अतः लेव वाइगोत्सकी ने सामाजिक अंत क्रिया को बालक के संज्ञानात्मक विकास का मूल कारण माना है।

वाइगोत्सकी के सिद्धांत के नाम

1. वाइगोत्सकी का भाषा सिद्धांत

2. वाइगोत्सकी का सामाजिक विकास का सिद्धांत

3. वाइगोत्सकी का अधिगम सिद्धांत

4. वाइगोत्सकी का सामाजिक रचनावाद

5. वाइगोत्सकी का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत

6. जोन ऑफ प्रोक्सिमल डेवलपमेंट (ZPD)

7. हिंदी भाषा में संज्ञानात्मक विकास का वाइगोत्सकी का सिद्धांत

अंतरीकरण (Internalisation) :- बाहर (वातावरण) से अंदर की ओर (बच्चे के आंतरिक) की दिशा में होने वाले विकास को वाइगोत्सकी ने अंतरीकरण (internalisation) कहा है। मनुष्य बाहरी वातावरण के अवलोकन को अपने भीतर आत्मसात करके सीखता है।

भाषा का विकास (Development of Language)वाइगोत्सकी को अनुसार बालक के भाषा का विकास अंतः क्रिया द्वारा ही होता है। भाषा का विकास मानव चिंतन के स्वभाव को बदल देता है। वाइगोत्सकी अनुसार भाषा विकास का आधार अंतः क्रिया है।

बालक दो प्रकार से भाषा सीखता है –

1. मस्तिक या आंतरिक विचार से (अशाब्दिक)

2. बाहरी विचार (शाब्दिक) अर्थात बालक विचारों को ध्वनियों में परिवर्तन कर लेता है।

भाषा यंत्र – भाषा के गुणों को एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति तक सामाजिक अंतः क्रिया द्वारा स्थानांतरित करता है। (भाषा के गुण – भाव, विचार, कौशल, ज्ञान, नैतिकता)

जैसे – कोई व्यक्ति पंजाब का रहने वाला है जो किसी कार्य हेतु गुजरात में निवास करता है और उनके पड़ोस में राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के लोग भी निवास कर रहे हैं।

जब अपने पड़ोसियों के साथ हमारी अंतः क्रिया होती है तो उनकी भाषा, संस्कृति, रहन-सहन, खानपान, रीति रिवाज आदि का हमें ज्ञान हो जाता है।

भाषा स्थानांतरण – अनुकरण द्वारा, निर्देशों द्वारा, सहपाठियों द्वारा।

ढांचा निर्माण (Scaffolding) ढांचा निर्माण विकास के संभावित क्षेत्र से संबंधित संप्रत्यय है। वाइगोत्सकी के अनुसार संवाद ढांचा निर्माण का महत्वपूर्ण औजार है। ढांचा निर्माण का कार्य अस्थायी होता है।

क्योंकि जब बालक किसी कार्य या ज्ञान अर्जन में पहले पहल अपने शिक्षक, सहपाठियों या माता-पिता की सहायता की जरूरत होती है तथा बाद में सहायता की आवश्यकता कम होते होते समाप्त हो जाती है।

उदाहरण के लिए एक छोटा बालक जो अभी तक चलना नहीं सीखा है तो उसे माता-पिता के सहयोग की आवश्यकता है। वे उसे अंगुली, हाथ पकड़कर धीरे धीरे चलना सिखाएंगे। कुछ समय बाद बालक स्वयं चलने लगता है, दौड़ने लगता है तो माता-पिता की सहायता की आवश्यकता नहीं रहती।

कहने का तात्पर्य है कि कक्षा-कक्ष में जब शिक्षक कोई नई विषय वस्तु बालक को पढ़ाएगा तो शिक्षक को ज्यादा निर्देश देने पड़ेंगे तथा संवाद भी ज्यादा करना पड़ेगा। जब बालक विषय वस्तु को सीख जाता है तो निर्देशों एवं संवाद में कमी आने लगती है और बच्चा कार्य अपने आप करने लगता है।

भाषा और विचार – वाइगोत्सकी के अनुसार बच्चे भाषा का प्रयोग न केवल संप्रेषण अपितु स्व निर्देशित तरीके से कार्य करने के लिए अपने व्यवहार हेतु योजना बनाने, निर्देश देने व मूल्यांकन करने में भी करते हैं।

स्व निर्देशन में भाषा के प्रयोग को आंतरिक स्वभाषा या निजी भाषा कहा जाता है। पियाजे ने निजी भाषा को आत्म केंद्रित माना है परंतु वाइगोत्सकी के अनुसार प्रारंभिक बाल्यावस्था में यह बालक के विचारों का एक महत्वपूर्ण साधन है।

वाइगोत्सकी ने बालक के संज्ञानात्मक विकास (Congnitive Development) में सामाजिक कारको तथा भाषा को महत्वपूर्ण कारक माना है। उनका मानना था कि संज्ञानात्मक विकास कभी भी एकाकी नहीं हो सकता। यह भाषा विकास, सामाजिक विकास यहां तक कि शारीरिक विकास के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ में होता है।

इसलिए वाइगोत्सकी बालकों के संज्ञानात्मक विकास में सामाजिक अंतः क्रिया को एक मूलभूत अंग स्वीकार करने पर बल देते हैं। उनका मानना है कि ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में समुदाय एक केंद्रीय भूमिका के रूप में कार्य करता है।

अतः वाइगोत्सकी के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत को सामाजिक सांस्कृतिक सिद्धांत (social cultural theory) भी कहा जाता है।

वाइगोत्सकी (vygotsky) के अनुसार अधिगम की सामाजिक अंतः क्रिया प्रक्रिया में बालकों के वास्तविक विकास (बिना किसी मदद के) के स्तर से संभावित विकास (सहायता से किसी कार्य को करने में सक्षम) के स्तर की ओर ले जाने का प्रयास किया जाता है। वाइगोत्सकी ने इसे समीपस्थ विकास क्षेत्र (Zone of Proximal Development) की संज्ञा दी है।

वाइगोत्स्की ने बताया है कि किसी भी प्रकार के नए ज्ञान के निर्माण में या किसी नई भाषा को सीखने में समाज निर्देशित अंतः क्रिया की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। उनके सिद्धांत का समर्थन जेरोम ब्रूनर ने भी किया है। उनके अनुसार बालक का वातावरण और आसपास के लोग उसकी भाषा विकास में सहायक होते हैं।

उन्होंने भाषा को एक मनोवैज्ञानिक साधन के रूप में देखा और बताया कि इसके द्वारा बालक किसी भी चीज के प्रति अपनी समझ विकसित करता है तथा आसपास के प्रोढ़ तथा कुशल व्यक्ति उसकी इस अधिगम प्रक्रिया में सहायता करते हैं।

जब बालक प्रोढ़ व्यक्तियों तथा साथियों के साथ संवादात्मक क्रिया में सम्मिलित होते हैं तब वे उन संवादों को आत्मसात कर लेते हैं। जिसका प्रयोग वह बाद में स्वयं के विचार को निर्देशित करने के लिए आंतरिक संभाषण के रूप में करते हैं।

उदाहरण – एक बालक किसी कार्य को करते समय अपनी मां द्वारा दिए गए निर्देश को ध्यानपूर्वक सुनता है तथा बाद में जब स्वतंत्र पूर्वक वह ऐसे किसी कार्य को करना प्रारंभ करता है तब उस निर्देशों का अनुसरण करता है। वाइगोत्सकी ने अपने सिद्धांत में समीपस्थ विकास का क्षेत्र का वर्णन किया है।

समीपस्थ विकास का क्षेत्र (Zone of Proximal Development – ZPD)

संभावित विकास का क्षेत्र, ZPD क्या है –

लेव वैगोत्सकी के अनुसार, “बच्चों के सीखने का एक समीपस्थ क्षेत्र होता है। जब बच्चों को ऐसा कार्य दिया जाए जो उनके वर्तमान स्तर से थोड़ा अधिक मुश्किल हो तो वो बेहतर जुड़ते हैं और सीखते हैं।”

ये हमें बताता है कि बच्चों को जोड़ने के लिये हम चुनौती का प्रयोग करें – और वह न तो बहुत ही मुश्किल हो ना बहुत आसान।

यह एक महत्वपूर्ण संप्रत्यय है, जो यह बताता है कि कोई बालक स्वयं के स्तर तथा किसी अन्य कुशल व्यक्तियों की सहायता एवं मार्गदर्शन से क्या प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं। बच्चा जो कर रहा है तथा जो करने की क्षमता रखता है के बीच के क्षेत्रों को संभावित विकास का क्षेत्र कहा है।

अर्थात संभावित विकास का क्षेत्र बच्चे के द्वारा स्वतंत्र रूप से किए जा सकने वाले तथा सहायता के साथ करने वाले कार्यों के बीच का अंतर है। जबकि जहां बच्चे बिना किसी सहायता से अपने कार्य को करते हैं तो वह वास्तविक विकास का क्षेत्र कहलाता है।

उदाहरण के रूप में मान लिया जाए कि एक बालक भाषा के किसी विशेष बिंदु पर व्याकरणगत नियमों पर आधारित वाक्य संरचना बनाने में कठिनाई महसूस करता है, लेकिन जब उसे किसी कुशल व्यक्ति की सहायता प्राप्त होती है तब वह उसे आसानी से करने में सक्षम हो जाता है। वाइगोत्सकी ने इसे पाठ बांधना (scaffolding) की संज्ञा दी है।

Zone of Proximal Development

स्काफोल्डिंग का तात्पर्य बालकों में प्रगतिशील तरीके से उच्च समझ तथा अंततः विशेष अनुभव प्रदान करने वाले अधिगम प्रक्रिया में प्रयुक्त विभिन्न निर्देशक तकनीकों से है। लेव वाइगोत्सकी के अनुसार वह कार्य जो बालक के स्वयं के लिए अत्यधिक कठिन है परंतु किसी प्रौढ़ और अधिक कुशल साथी की सहायता से कर पाना संभव है।

इस प्रक्रिया में शिक्षक छात्रों को क्रमिक स्तर से तात्कालिक सहायता उपलब्ध कराता है, जो बालकों में उच्च स्तर की समझ तथा कौशल विकसित करने में सहायता प्रदान करती है। वह बालकों में उत्पन्न समस्या तथा अधिगम के अंतराल को कम करने में भी मदद करता है।

उदाहरण के रूप में जैसे किसी बालक को रेफ तथा हलंत युक्त ‘र’ के नियमों का ज्ञान नहीं होने से इस अर्धांक्षर से बनने वाले शब्दों के उच्चारण में बार-बार समस्या महसूस करता है लेकिन किसी के द्वारा जब उसे उचित सहयोग तथा ‘र’ के नियमों की जानकारी प्राप्त होती है तब वह स्वतंत्र रूप से उच्चारण करने में समर्थ हो जाता है।

जब बालक किसी वस्तु या व्यक्ति से संपर्क स्थापित करता है तथा अन्य स्व नियंत्रित क्रियाएं करता जाता है तब उसकी समस्त गतिविधियां एक दूसरे से संबंधित होती जाती है जो एक प्रकार से कार्य उपलब्धि का मानसिक प्रस्तुतीकरण कहलाती है।

Vygotsky And Language Development

एक बच्चे की भाषा के विकास में दूसरों के साथ संप्रेषण एक महत्वपूर्ण कारक है।”

लेव वाइगोत्सकी

वाइगोत्स्की भाषा विकास के लिए सामाजिक अंतः क्रिया को एक जिम्मेदार कारक के रूप में देखते हैं। उनके अनुसार अर्थ पूर्ण संवादात्मक प्रक्रिया के द्वारा जब संपर्क स्थापित किया जाता है तब भाषा विकास में विशेष सहायता प्राप्त होती है। उन्होंने बाह्या जगत से संपर्क स्थापित करने के लिए भाषा को एक महत्वपूर्ण साधन माना है।

वाइगोत्स्की के अनुसार बालकों के संज्ञानात्मक विकास में भाषा की दो महत्वपूर्ण भूमिकाएं है –

पहला यह कि इसके द्वारा व्यक्ति बालकों तक समस्त सूचनाएं स्थानांतरित कर पाता है तथा

दूसरा की भाषा स्वयं में बौद्धिक आत्मसात करने का बहुत ही सशक्त साधन है। वाइगोत्सकी ने भाषा विकास के 3 रूपों की चर्चा की है

1. सामाजिक वाक् (Social Speech) – बाह्य संपर्क स्थापित करने के लिए अन्य के साथ संवाद स्थापित करने की क्रिया सामाजिक वाक् कहीं जाती है।

यह जन्म से 2 वर्ष तक की अवधि तक होता है और इसे बाह्य संभाषण भी कहा जाता है। आंतरिक संभाषण यह अंतरण 3 साल से 7 साल के बीच होता है इसमें बच्चे आपस में बातचीत करना सीख लेते हैं और इसके बाद आतम बातचीत है बालकों का स्वभाव बनता जाता है फिर वह बिना स्पष्ट बोले ही कई कार्य करने की क्षमता विकसित कर लेते हैं आतम बातचीत संज्ञानात्मक विकास की नींव मनी गई है।

2.  आंतरिक संभाषण (Internal Speech) – यह अंतरण 3 से 7 साल के बीच होता है। इसमें बच्चे आपस में बातचीत करना सीख लेते हैं और इसके बाद आत्म बातचीत बालकों का स्वभाव बनता जाता है फिर वह बिना स्पष्ट बोले ही कई कार्य करने की क्षमता विकसित कर लेता है। आत्म बातचीत संज्ञानात्मक विकास की नींव मानी गई है।

3.आंतरिक संभाषण (Inner Speech)- आतम बातचीत बालकों को स्व निर्देशन में सहायता प्रदान करती है। बच्चे अपने कार्य को दिशा देने के लिए स्वयं से बोलते हैं। जैसे जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं उनकी यह आत्म बातचीत अंतरीकृत होकर आंतरिक संभाषण में परिवर्तित होते जाती है, जो आगे की अवस्था में चिंतन के रूप में परिलक्षित होती है।

पियाजे ने इस बातचीत को अपरिपक्व तथा आत्म केंद्रित स्पीच कहा है। वाइगोत्सकी ने यह भी माना है कि जो बालक आत्म बातचीत अधिक करते हैं वह अन्य की अपेक्षा सामाजिक रूप से अधिक दक्ष होते हैं। बालक इसका प्रयोग उच्च स्तर की क्रिया करने में भी करते हैं।

वाइगोत्सकी ऐसे पहले मनोवैज्ञानिक हैं जिन्होंने बालकों के आत्म बातचीत की धनात्मक भूमिका को स्वीकार किया है। ‘ निजी भाषा’ शब्दावली का प्रयोग पहली बार लेव वाइगोत्सकी के द्वारा किया गया। संभवतः इन्हीं कारणों से वाइगोत्सकी को पियाजे के सिद्धांत के विस्तारक के रूप में भी जाना जाता है।

वाइगोत्सकी और पियाजे के सिद्धांत में अंतर

Deference between vygotsky and piyage theory

वाइगोत्सकी और जीन पियाजे के सिद्धांत में प्रमुख अंतर भाषा और चिंतन के दृष्टिकोण से है।

1. वाइगोत्सकी के अनुसार बालक में विचार पहले तथा भाषा बाद में आती है जबकि प्याजे के अनुसार बालक में पहले भाषा आती है विचार बाद में। परंतु वाइगोत्सकी और पियाजे के सिद्धांतों का निष्कर्ष यही है कि विचार और भाषा एक दूसरे पर आधारित है।

2. वाइगोत्सकी बच्चों के सीखने में सामाजिक कारक (social factor) की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल देते हैं। पियाजे बालक के विकास का आधार आयु को मानते हैं तो वाइगोत्सकी समाज को मानते हैं।

3. वाइगोत्सकी के अनुसार जैविक कारक मानव विकास में बहुत ही कम भूमिका निभाते हैं। जबकि सामाजिक कारक संज्ञानात्मक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इसके विपरीत पियाजे का सिद्धांत जैविकता तथा विकास अधिगम में अग्रणी भूमिका निभाते हैं।

वाइगोत्सकी के सिद्धांत के अनुसार अधिगम व विकास सांस्कृतिक व सामाजिक वातावरण की मध्यस्थता के साथ चलते हैं।

4. वाइगोत्सकी के अनुसार अधिगम (learning) सर्वप्रथम बालक तथा वयस्क जिसमें जो अधिक ज्ञानवान होगा के बीच होता है। दूसरों के साथ अंतः क्रिया तथा सहयोग द्वारा जानने की प्रक्रिया गुणात्मक रूप से श्रेष्ठ होती है।

अतः वे इस बात पर जोर देते हैं कि संज्ञानात्मक विकास की प्रकृति सामाजिक है न की संज्ञानात्मक, जैसा जीन पियाजे का मानना है। इस प्रकार पियाजे का सिद्धांत निर्मितीवाद है जबकि वाइगोत्सकी का सामाजिक निर्मितीवाद है। वाइगोत्सकी का सामाजिक निर्मितीवाद अधिगम के लिए दूसरे के सहयोग पर बल देता है।

यह भी पढ़ें – एरिक्सन का मनोसामाजिक सिद्धांत MCQ

वाइगोत्सकी सिद्धांत का शैक्षिक निहितार्थ

वाइगोत्सकी (vygotsky) के अनुसार भाषा अर्जन के लिए मात्र शब्दों पर बल देना ही पर्याप्त नहीं अपितु भाषा तथा विचारों पर आधारित परस्पर प्रक्रिया की आवश्यकता होती है। शिक्षक बालकों के दृष्टिकोण को समझकर उनके भाषिक स्तर में सुधार ला सकते हैं।

वाइगोत्सकी का कहना है कि बालक सामाजिक अनुभव द्वारा स्वयं ज्ञान निर्माण करते हैं और इस स्थिति में प्रौढ़ तथा अनुभवी व्यक्ति उसे मार्ग निर्देशन तथा सहायता पहुंचाते हैं।

वाइगोत्हकी के इस विचार का द्वितीय भाषा अध्ययन तथा शोध पर दूरगामी प्रभाव देखने को मिलता है, जो सांस्कृतिक ऐतिहासिक तथा सामाजिक परिप्रेक्ष्य में सामाजिक अंतः क्रिया पर अत्यधिक है।

यद्यपि वाइगोत्सकी ने प्रत्यक्षतया द्वितीय भाषा अर्जन पर टिप्पणी नहीं की है, किंतु मनुष्य की भाषा सीखने का संपर्क स्थापित करने की क्षमता का विश्लेषण करते हुए उन्होंने इसे परिभाषित किया है।

वाइगोत्सकी (vygotsky) ने यह भी बताया है कि बालकों की वैयक्तिक विभिन्नता को ध्यान में रखते हुए कक्षा में उसकी सक्रिय सहभागिता सुनिश्चित किया जाना चाहिए। उन्हें ऐसी समस्या प्रदान की जानी चाहिए जिससे वह अपने साथियों एवं शिक्षकों के सहयोग से समीपस्थ विकास के क्षेत्र को सशक्त बना सकें।

ऐसा करने से वे आत्मानुशासन के प्रति सजग भी रहेंगे। कक्षा में शिक्षकों को चाहिए कि वह सहयोगी अधिगम समूह का निर्माण करें जिसमें परस्पर समस्या-समाधान विधि से उच्च संज्ञानात्मक चिंतन ( high Cognitive thinking) विकसित करने में मदद मिल सके।

 

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