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6th Semester History
Issues in Twentieth-Century World History-II
Unit – 1 शीत युद्ध
द्वितीय
विश्वयुद्ध सन 1945 में मित्र शक्ति जिसमें अमेरिका,
सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस ने जर्मनी इटली में जापान की शक्तियों को हराया था| इस युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो महा शक्तियां उभर कर सामने आई,
संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ|
शीत युद्ध क्या था?
शीत
युद्ध सभी प्रकार के युद्ध से अलग प्रकार का युद्ध है, यह एक वैचारिक युद्ध की स्थिति थी जिसमें अपने प्रतिद्वंदी को सभी प्रकार
के क्षेत्रों में पीछे छोड़ना शामिल था| जैसे कि
प्रौद्योगिकी , सेना, सामाजिक, और संचार आदि क्षेत्रों में|
सोवियत
संघ पूर्वी दल का नेतृत्व कर रहा था और पश्चिमी दल का नेतृत्व अमेरिका में उसके
साथ ही ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा किया गया|
Ø सोवियत संघ - साम्यवादी विचारधारा
Ø अमेरिका ब्रिटेन और फ्रांस- उदारवादी लोकतंत्र की विचारधारा
शीत
युद्ध की अवधि 1945 से 1991 तक थी|
शीत युद्ध के कारण:
पॉट्सडैम सम्मेलन: पॉट्सडैम
सम्मेलन का आयोजन वर्ष 1945 में बर्लिन में
अमेरिका ब्रिटेन और सोवियत संघ के बीच निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार विमर्श करने
के लिए किया गया था|
1. पराजित जर्मनी में तत्कालिक प्रशासन की स्थापना की जाए|
2. पोलैंड की सीमाओं का निर्धारण|
3. ऑस्ट्रिया का आधिपत्य।
4. पूर्वी यूरोप में सोवियत संघ की भूमिका।
§ इस सम्मेलन के बीच सोवियत संघ चाहता था कि पोलैंड का कुछ भाग सोवियत
संघ को दे दिया जाए परंतु अमेरिका और ब्रिटेन| इस मांग से सहमत नहीं थे|
§ अमेरिका ने सोवियत संघ को परमाणु बम गिराने की कोई भी सटीक प्रकृति के
बारे में कोई सूचना नहीं दी थी जिससे कि अमेरिका और सोवियत संघ के बीच में संबंधों
में खटास आ गई थी और शीत युद्ध आरंभ हो गया था|
परमाणु शक्ति : परमाणु शक्ति
भी शीत युद्ध का एक महत्वपूर्ण कारण है|
यह तय हो गया था कि अमेरिका और सोवियत संघ मिलकर दोनों जापान पर आक्रमण करके उसे
हरा देंगे परंतु, अमेरिका ने पहले ही परमाणु शक्ति का प्रयोग
करके जापान को नेस्तनाबूद कर दिया और अपनी परमाणु शक्ति का प्रदर्शन पूरे विश्व के
सामने किया| द्वितीय विश्व युद्ध के समय अमेरिका ने जापान पर
परमाणु बम का प्रयोग करके पूरे विश्व को एक संदेश दिया था कि वह परमाणु शक्ति
संपन्न देश है जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक दबाव सा बन गया था कि अमेरिका
एक महाशक्ति है| वही सोवियत संघ भी परमाणु शक्ति संपन्न बनने
की राह में आगे बढ़ रहा था और परमाणु शक्तियों का प्रयोग करके वह अमेरिका को पीछे
छोड़ना चाहता था| इसीलिए परमाणु शक्ति थी एक महत्वपूर्ण कारण
है शीत युद्ध का| दोनों महाशक्ति एक दूसरे को परमाणु शक्ति
की दौड़ में पीछे छोड़ना चाहती थी|
जर्मनी और पूर्वी यूरोप:
अमेरिका और सोवियत संघ दोनों मां शक्तियां चाहती थी कि जर्मनी उनके नियंत्रण में आ
जाए| उसी प्रकार सोवियत संघ चाहता था कि पूर्वी यूरोप जो
उसकी सीमा के पास था उस पर फरवरी 1948 तक कब्जा करें| स्टालिन
अपने इस प्रयास में सफल हुआ और बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया,
हंगरी और पोलैंड को अपने क्षेत्र में ले लिया| पूर्वी यूरोप का यह हिस्सा शीत युद्ध का और प्रतिद्वंदिता का कारण बना के
लिए क्रोध जनक नीतियों समान रूप से कार्यवाही की गई|
ईरान और टर्की: लंबे समय से
सोवियत संघ का ईरान और टर्की पर कब्जा था| इस कब्जे से पश्चिमी शक्तियों को एक संदेश मिला कि सोवियत संघ इन
क्षेत्रों पर अपना वैचारिक प्रभाव में साम्यवाद को बढ़ाना चाहता है| इसके कारण अमेरिका इस गतिविधि से परेशान था और वह चाहता था कि सोवियत संघ
ईरान और टर्की से अपना कब्जा हटा ले| सोवियत संघ और अमेरिका
के बीच में संघर्ष बढ़ता चला गया| ईरान और टर्की पर कब्जा भी शीत युद्ध का कारण है|
चर्चिल का फुल्टन भाषण: ब्रिटिश कार्यवाहक प्रधानमंत्री चर्चिल ने फुल्टन के भाषण में कहा
युद्ध के पश्चात् शीतयुद्ध के लिए संयुक्त राष्ट्र ने वैचारिक सामने के लिए एक
क्षेत्र तैयार कर चुका है । चर्चिल ने अपने भाषण में कहा स्टालिन और उसका साम्यवाद
मानव जाति के लिए एक महान विपत्ति है । अपने भाषण के समय उसने ' लौह आवरण ' शब्द का प्रयोग किया और बताया कैसे
सोवियत संघ ने अपने प्रभाव को बचाने के लिए यूरोप में अवरोधक बना रखे हैं बहुत से
विद्वान आज भी विश्वास करते हैं कि फुल्टन भाषण ही शीतयुद्ध का प्राथमिक कारण है ।
ट्रूमैन
सिद्धांत
(Truman's
Doctrine):
§ ट्रूमैन सिद्धांत की घोषणा 12 मार्च,
1947 को अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन द्वारा की गई थी।
§ ट्रूमैन सिद्धांत सोवियत संघ के
साम्यवादी और साम्राज्यवादी प्रयासों पर नियंत्रण की एक अमेरिकी नीति थी जिसमें
दूसरे देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करने जैसे विविध उपाय अपनाए गए।
§ उदाहरण के लिये अमेरिका ने ग्रीस
एवं तुर्की की अर्थव्यवस्था और सेना के समर्थन के लिये वित्तीय सहायता का अनुमोदन
किया।
§ इतिहासकारों का मानना है कि इसी
सिद्धांत की घोषणा से शीत युद्ध के आरंभ की आधिकारिक घोषणा चिह्नित होती है।
शीत युद्ध के चरण –
प्रथम चरण 1947 से 1950:
- ट्रूमैन का सिद्धांत शीत युद्ध का आरंभ था और ट्रूमैन की अवरोध की नीति
इस बात पर आधारित थी कि सोवियत संघ को साम्यवाद के विस्तार करने से रोकना|
- ट्रूमैन का सिद्धांत मार्शल योजना के नाम से भी जाना जाता है इस योजना के
तहत यूरोप की बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए अमेरिका द्वारा दी गई
वित्तीय सहायता तथा अन्य प्रकार की सहायता शामिल है|
- बर्लिन की नाकाबंदी इसी चरण में की गई थी तथा इसका परिणाम यह निकला कि 1949
में नाटो (नॉर्थ अटलांटिक
ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) की स्थापना की गई|
दूसरा चरण 1950 से 1953:
- शीत युद्ध के दूसरे चरण की शुरुआत कोरियाई संकट से हुई थी जिसने यूरोप के
बाहरी हिस्से में शीत युद्ध का स्थान ले लिया था|
- सोवियत संघ अपने परमाणु हथियारों को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के साथ मिलकर
बनाना शुरू कर दिया था|
- इस चरण में दोनों ही महा शक्तियां परमाणु शक्ति संपन्न महाशक्ति बन रही थी|
तीसरा चरण 1953 से 1957:
- तीसरे चरण का आरंभ 1953 में स्टालिन की मृत्यु के
काल से जाना जाता है इस समय संयुक्त राष्ट्र के राष्ट्रपति ट्रूमैन का स्थान
राष्ट्रपति आइजनहावर ने ले लिया|
- यह वारसा फैक्ट के नाम से भी जाना जाता है जिसमें सोवियत रूस व उसके
साथियों ने इस पर हस्ताक्षर कर जर्मनी का औपचारिक विभाजन हो गया पूर्वी व पश्चिमी
भागों में|
- इस चरण में सोवियत रूस का घरेलू विकास और विदेशी मामलों को सुधारना पर
अधिक ध्यान था|
-
1956 में सोवियत संघ के हस्तक्षेप से हंगरी में बहुत सारी लड़ाइयां
हुई और शीत युद्ध आग के रूप में जल उठा|
- इजराइल ने ब्रिटेन के साथ अपने संबंध स्थापित कर लिए और फ्रांस ने 1956 में मित्र पर आक्रमण कर दिया|
- इस चरण में हुई झगड़ों की वजह से बगदाद पैक्ट 1955 में सामने आया जो कि बाद में CENTO से जाना गया|
चौथा चरण 1957 से 1962:
- इस चरण को दो महत्वपूर्ण दिशाओं के रूप में जाना जाता है पहली दिशा सह
अस्तित्व की और दूसरी दिशा क्यूबा मिसाइल संकट|
- शीत युद्ध में 1962 क्यूबा मिसाइल संकट सबसे खतरनाक
था, जिसमें पहली बार दोनों महाशक्ति आमने सामने लड़ाई के लिए
तैयार हो गई थी लेकिन संयुक्त राष्ट्र के राष्ट्रपति केनेडी वह सोवियत संघ के
राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव ने इस संकट से आने से पहले ही आपस में सहमति कर ली थी|-
पांचवा चरण 1962 से 1969:
-
1962 में सह अस्तित्व वह प्रतियोगिता का समय था| इस चरण में परमाणु हथियारों में वृद्धि जारी थी और कुछ नए राष्ट्रीय पर्व
आलू हत्यारों की दिशा में आगे जा रहे थे जैसे ब्रिटेन फ्रांस चीन|
-
1963 में पार्सल टेस्ट बेन ट्रीटी आई जिसमें वातावरण में
परमाणु हथियारों के परीक्षण पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- सन
1968 में परमाणु अप्रसार संधि लाई गई जो कि
परमाणु हथियारों में वृद्धि में कमी लाने के लिए लाई गई थी।
छठा चरण 1969 से 1978:
- इस चरण को चुनाव की समाप्ति के रूप में जाना जाता है। जहां संयुक्त
राष्ट्र में सोवियत संघ ने सह अस्तित्व की शुरुआत की थी।
-
1969 में चीन में सोवियत संघ में एक छोटी सी सीमा के हिस्से को लेकर
लड़ाई हुई थी। - इसी
चरण के दौरान भारत व पाकिस्तान का युद्ध 1971 में 1975
में इथोपिया और 1978 अंगोला में युद्ध हुआ।
- इस चरण के दौरान अपने राजनीतिक लक्ष्यों के लिए दोनों महा शक्तियों के बीच
स्थानीय मतभेद रहे|
सातवा चरण 1979 से 1987 नई शीत युद्ध:
-
शीत युद्ध की शुरुआत 1979 में सोवियत के
अधिग्रहण अफगानिस्तान से हुई। यह काल तनाव
की समाप्ति के युग का अंत था।
- इस चरण के दौरान शीत युद्ध में बड़े-बड़े
शस्त्रों की दौड़ लगी थी अंतरिक्ष तक पहुंच गए और अमेरिका के राष्ट्रपति भी करने
स्टाफ और कार्यक्रम का नाम दिया।
- संयुक्त राष्ट्र के नए राष्ट्रपति रीगन ने
नाभिकीय हथियारों को कार्यवाही से हटा
दिया और लीबिया सन 1986 में हस्तक्षेप
किया। 1983 में
सोवियत ने कोरिया के नागरिक उड़ान पर आक्रमण करा लेकिन इतिहास में एक मोड़ आया
मिखाईल गोर्बाचोव 1985 में रशिया के राष्ट्रपति बने।
- मिखाईल गोर्बाचोव अपनी नीतियों से संयुक्त
राष्ट्र अमेरिका व सोवियत संघ के रिश्तो में सुधार लाना चाहते थे उनकी नई नीतियां
पेरेस्त्रोइका (पुनर्निर्माण),ग्लासनोस्त (खुलापन) ने कुछ बदलाव किया जो पश्चिम का तनाव की
समाप्ति था।
शीत युद्ध का अंत
1991 में, सोवियत संघ का पतन कई कारकों के कारण
हुआ, जिसने शीत युद्ध के अंत को चिह्नित किया, क्योंकि एक महाशक्ति कमजोर हो गई थी।
सोवियत संघ के पतन के कारण:
सैन्य कारण
अंतरिक्ष की दौड़ और हथियारों की दौड़ ने सैन्य जरूरतों के लिए
सोवियत संघ के संसाधनों का काफी हिस्सा खत्म कर दिया।
मिखाइल गोर्बाचेव की नीतियां
1. इन कदमों ने साम्यवादी विचारधारा में नवजागरण की चिंगारी फैलाने के बजाय पूरे सोवियत तंत्र की आलोचना के द्वार खोल दिए।
शीत युद्ध का अंतरराष्ट्रीय राजनीति
पर प्रभाव:
शीत युद्ध ने विश्व राजनीति को उतना
ही प्रभावित किया जितना कि दोनों विश्व युद्धों ने किया था| शीत युद्ध के
दौरान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सारे प्रभाव पड़े| शीत युद्ध के
दौरान सैनिक गठबंधन नाटो और वारसा पैक्ट खुलेआम हस्तक्षेप की नीति को अपना रहे थे| शीत युद्ध ने
दोनों महा शक्तियों की अर्थव्यवस्था में बड़े स्तर पर प्रभाव डाला विकास को छोड़कर
हथियारों की होड़ में लग गई और अपने हत्यारों को और बेहतर करने लगी|
अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध
के प्रभाव है जैसे:
- शीत युद्ध ने
यूनाइटेड नेशन को बनाया जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा व विश्व को आगे
बढ़ाने के लिए कार्य किया|
- शीत युद्ध के अंत
में विश्व में दो ध्रुवीयता को समाप्त कर दिया और विश्व में केवल एक महाशक्ति ही
बच गई|
- शीत युद्ध के
अंत के साथ ही NAM की प्रसंगिकता पर प्रश्न उठाए जाने लगे| अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर केवल एक महाशक्ति के आने से तीसरी दुनिया के देश ज्यादा असुरक्षित हो गए
क्योंकि महाशक्ति के पास बहुत सारे हथियार हैं|
- सोवियत संघ के
विघटन के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका का वर्चस्व प्रदर्शित हो गया तथा
अमेरिका विश्व के किसी भी क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकता है|
- वर्ल्ड ट्रेड
ऑर्गेनाइजेशन का जन्म जिसमें व्यापार विकास की नई शर्तों थी शीत युद्ध के पश्चात
वह विकासशील देशों का समर्थन करेगा|
- शीत युद्ध के अंत के
साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रभाव में वृद्धि हुई|
- पूर्व महाशक्ति को 15 स्वतंत्र देशों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था: आर्मेनिया, अजरबैजान, बेलारूस, एस्टोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, लातविया, लिथुआनिया, मोल्दोवा, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उजबेकिस्तान ।
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