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6th
Semester Education Sec
Education: Media in Education
Unit 1 - संचार मीडिया और शिक्षा
मौखिक संचार की
परिभाषा - मौखिक संचार,
बोलें गए शब्दों के उपयोग के साथ देने या प्राप्त करने की प्रक्रिया है।
सूचना के त्वरित प्रसारण और त्वरित उत्तर के कारण दुनिया भर में संचार के इस साधन
का अत्यधिक उपयोग किया जाता है।
मौखिक संचार या तो
दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच प्रत्यक्ष वार्तालाप के रूप में हो सकता है
जैसे आमने - सामने संचार,
व्याख्यान,
बैठकें,
सेमिनार,
समूह चर्चा,
सम्मेलन,
आदि या अप्रत्यक्ष वार्तालाप, अर्थात् संचार का
वह रूप जिसमें एक माध्यम का उपयोग किया जाता है।
टेलीफोनिक
वार्तालाप,
वीडियों कॉल,
वॉइस कॉल,
आदि जैसी सूचनाओं के आदान - प्रदान के लिए। संचार की इस विधा के बारे में
सबसे अच्छी बात यह है कि संचार, प्रेषक या रिसीवर
के लिए पक्ष,
शरीर की भाषा,
चेहरे की अभिव्यक्ति स्वर या पिच की तरह अशाब्दिक संकेतों को नोटिस कर
सकते हैं,
यह पार्टियों के बीच संचार को अधिक प्रभावी बनाता है।
- एक बार वोले गए शब्दों को कभी वापस नहीं लिया जा सकता है।
-
लिखित संचार की
परिभाषा - वह संचार जिसमें संदेश लिखित या मुद्रित रूप में प्रेषित होता है, लिखित संदेश के रूप
में जाना जाता है। यह संचार का सबसे विश्वसनीय तरीका है, और यह अपनी औपचारिक
और परिष्कृत प्रकृति के कारण व्यापार की दुनिया में बहुत पसंद किया जाता है।
लिखित संचार के
विभिन्न चैनल पत्र,
ई - मेल,
पत्रिकाएं,
समाचार पत्र,
पाठ संदेश,
रिपोर्ट आदि हैं। लिखित संचार के कई
फायदे हैं जो निम्नानुसार हैं:
1.
भविष्य में संदेश का जिक्र करना आसान होगा।
2.
संदेश प्रसारित करने से पहले, कोई इसे संगठित
तरीके से संशोधित या फिर से लिख सकता है।
3.
संदेश की गलत व्याख्या की संभावना बहुत कम है क्योंकि शब्द सावधानी से
चुने जाते हैं।
4.
संचार की योजना बनाई है।
5.
अभिलेखों के सुरक्षित रखने के कारण कानूनी साक्ष्य उपलब्ध है।
लेकिन जैसा कि हम
सभी जानते है कि हर चीज के दो पहलू होते हैं, यही हाल लिखित
संचार का भी है क्योंकि संचार एक समय लेने वाला है। इसके अलावा, प्रेषक को कभी पता
नहीं चलेगा कि रिसीवर ने संदेश पढ़ा या नहीं।
रिसीवर की
प्रतिक्रियाओं के लिए प्रेषक को इंतजार करना होगा।
संचार के इस मोड
में बहुत सारी कागजी कार्रवाई होती है।
मौखिक संचार और लिखित संचार के बीच महत्त्वपूर्ण अन्तर -
मौखिक संचार और लिखित संचार के बीच मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं-
1.
संचार का प्रकार जिसमें प्रेषक मौखिक रूप से संदेश भेजने के माध्यम से
सूचना प्रेषित करता है। संचार मोड, जो सूचनाओं के आदान
- प्रदान के लिए लिखित या मुद्रित पाठ का उपयोग करता है, लिखित संचार के रूप
में जाना जाता है।
2.
लिखित संचार में पूर्व शर्त यह है कि प्रतिभागियों को साक्षर होना चाहिए
जबकि मौखिक संचार के मामले में ऐसी स्थिति नहीं है।
3.
लिखित संचार में उचित रिकॉर्ड है, जो मौखिक संचार के
मामले में ठीक विपरीत है। 4. मौखिक संचार लिखित
संचार से तेज है।
5.
एक बार बोले गए शब्द मौखिक संचार के मामले में उलट नहीं किए जा सकते।
दूसरी ओर,
लिखित संदेश में मूल संदेश का संपादन संभव है।
6.
संदेश की गलत व्याख्या मौखिक संचार में सभव है, लेकिन लिखित संचार
में नहीं।
7. मौखिक संचार में, प्राप्तकर्ता से त्वरित प्रतिक्रिया प्राप्त होती है जो लिखित संचार में संभव नहीं है।
गैर - मौखिक संचार उन प्रत्येक
भागों की समझ या व्याख्या पर आधारित है जो संचार अधिनियम का हिस्सा हैं, क्योंकि संदेशों का
प्रसारण शब्दों के माध्यम से नहीं बल्कि संकेतों के माध्यम से होता है। इसलिए, यदि रिसीवर संदेश
को पूरी तरह से समझता है और उचित प्रतिक्रिया होती है, तो संचार सफल होगा।
इस प्रकार के संचार
का एक बहुत स्पष्ट उदाहरण चेहरे की अभिव्यक्ति हावभाव और बोलते समय शरीर की स्थिति
है।
कई स्थितियों में
यह मौखिक संचार की स्थिति को और अधिक वैश्विक दृष्टि प्राप्त करने के लिए मजबूर
करता है,
लोगों की स्थिति को समझने के लिए (यदि वे नर्वस, आराम से, उदास) और कुछ
व्यक्तित्व विशेषताओं (यदि व्यक्ति शर्मीला, बहिर्मुखी है।
इसलिए,
यह उस जानकारी की प्राप्ति करने के लिए कार्य करता है जो प्रवचन हमें
प्रदान नहीं करता है।
गैर - मौखिक संचार
के प्रकार निम्नलिखित है:
(1)
Cronemia : यह संचार में समय का उपयोग है। उदाहरण के लिए समयनिष्ठ या अनपचा लोग, भाषण की गति आदि।
(ii)
Proxemia : यह संचार अधिनियम के दौरान दूसरों के संबंध में व्यक्ति द्वारा बनाए रखी गई
दूरी है। समीपता हमें बताती है जब संचार अंतरंग, व्यक्तिगत, सामाजिक और
सार्वजनिक है।
(iii)
स्वर : प्रेषक द्वारा उपयोग की जाने वाली आवाज का स्तर, स्वर और समय।
(iv)
हैष्टिक : संचार में स्पर्श का उपयोग भावनाओं ओर भावनाओं को व्यक्त करता
है।
(v)
Kinesia : व्यक्ति की शारीरिक भाषा का अध्ययन है, इशारों मुद्राओं, चेहरे के भाव।
(vi)
कलाकृतियों : यह उस व्यक्ति की उपस्थिति है जो उसके व्यक्तित्व के पहलुओं
को दर्शाता है,
उदाहरण के लिए ड्रेसिंग, गहने, जीवन शैली आदि।
मौखिक संचार और गैर - मौखिक संचार के बीच महत्त्वपूर्ण अन्तर -
(1)
मौखिक संचार के शब्दों का उपयोग किया जाता है, जबकि गैर - मौखिक
संचार संकेतों पर आधारित होता है।
(2)
कम है भ्रामक अवसर मौखिक संचार में प्रेषक और रिसीवर के बीच जबकि गैर -
मौखिक संचार में,
भाषा का उपयोग नहीं होने से समझ अधिक कठिन है।
(3)
मौखिक संचार में संदेशों का आदान - प्रदान तेज होता है जो प्रतिक्रिया को
बहुत तेज करता है। अशाब्दिक संचार अधिक समझ पर आधारित है, जो समय लेता है और
इसलिए धीमी है।
(4)
मौखिक संचार में,
दोनों पक्ष की उपस्थिति आवश्यक नहीं हैं, क्योंकि यह तब भी
किया जा सकता है जब पार्टियों अलग - अलग स्थानों पर हों। दूसरी ओर, गैर - मौखिक संचार
में दोनों पक्षों को संचार के समय होना चाहिए।
(5)
मौखिक संचार में,
दस्तावेजी साक्ष्य बनाए रखा जाता है यदि संचार औपचारिक या लिखित है।
लेकिन अशाब्दिक संचार का कोई निर्णायक सबूत नहीं है।
(6)
मौखिक संचार मनुष्यों की सबसे स्वाभाविक इच्छा को पूरा करता है, बोलना गैर - मौखिक
संचार के मामले में,
संचार अधिनियम में पार्टियों द्वारा किए गए कृत्यों के माध्यम से भावनाओं, भावनाओं या
व्यक्तित्व का संचार किया जाता है।
(7)
यह उल्लेख करना महत्त्वपूर्ण है कि दोनों प्रकार के संचार एक दूसरे के
पूरक हैं और कई मामलों में, एक साथ होते है।
औपचारिक शिक्षा (aupcharik shiksha)
औपचारिक शब्द के अर्थ को अगर हम समझें तो सामान्य शब्दों में इसका
अर्थ निकलता है- नियमों के तहत किसी कार्य को संपन्न करना। अतः औपचारिक शिक्षा (aupcharik shiksha) वह
शिक्षा है जिसे प्राप्त करने के लिए हमें कई नियमों का पालन करना पड़ता है।
औपचारिक शिक्षा की प्राप्ति के लिए हम शिक्षा के जिन संस्थानों में प्रवेश लेते
हैं वहां हमें शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई नियमों का पालन करना पड़ता है।
इस प्रकार की शिक्षा शिक्षार्थी विद्यालयों, महाविद्यालयों या विश्वविद्यालयों से प्राप्त करते हैं।
किसी भी प्रकार की शिक्षा जो की विद्यार्थी द्वारा प्राप्त की जाए
तथा उस शिक्षा के निश्चित उद्देश्य हों, वह निर्देशात्मक हो,
उसमें पर्यवेक्षण ( देखरेख ) आदि की सुविधा हो, तो इस प्रकार की शिक्षा को औपचारिक शिक्षा (aupcharik shiksha) कहते हैं।
औपचारिक शिक्षा (aupcharik
shiksha) को हम निम्न बिंदुओं से समझ सकते हैं –
1. इस प्रकार की शिक्षा विद्यालय,
महाविद्यालय, विश्वविद्यालय आदि संस्थानों में
संपन्न होती है।
2. इस प्रकार की शिक्षा के लक्ष्य एवं
उद्देश्य पहले से ही निर्धारित किये हुए होते हैं।
3. इस प्रकार की शिक्षा एक पूर्व
निर्धारित अवधी तक सीमित होती है।
4. इस प्रकार की शिक्षा के लिए निश्चित
आयु वर्ग निर्धारित होते हैं। इस प्रकार की शिक्षा को शिक्षार्थी ५ वर्ष की आयु से
प्राप्त करना शुरू करता है।
5. इस प्रकार की शिक्षा के पूर्व
निर्धारित लक्ष्य होते हैं। अतः (therefore) शिक्षक
शिक्षार्थी को दी जाने वाली शिक्षा के लिए पहले से तैयार होते हैं जिस कारण शिक्षा
के परिणाम अच्छे होते हैं।
6. इस प्रकार की शिक्षा (aupcharik
shiksha)शिक्षण संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों की देख-रेख में होती
है।
7. इस प्रकार की संस्थानों के कठोर नियम
होते हैं तथा ये नियम सभी शिक्षार्थियों के लिए समान होते हैं।
8. इस प्रकार की संस्था में शिक्षक तथा
शिक्षार्थी को किसी प्रकार की आजादी नहीं होती तथा सब नियम के आधार पर होता है।
9. इस प्रकार के शिक्षण संस्थानों को
बनाने के लिए इनके पीछे बड़े-बड़े संगठन होते हैं, जो इन
संस्थानों के नियम तथा इसमें प्रवेश से लेकर छोड़ने तक की संरचना तैयार करते हैं।
10. इस प्रकार की संस्थानों की
पाठ्यचर्या तथा पाठ्यक्रम संगठनों में विषय-विशेषज्ञों के द्वारा बनाए जाते हैं।
अतः पाठ्यक्रम पूर्व-निर्धारित होते हैं।
11. इस प्रकार की संस्थानों का पाठ्यक्रम
औपचारिक रूप से समय के अंतर्गत संपन्न करा दिया जाता है।
12. इस प्रकार की शिक्षण संस्थानों की
पूर्व निर्धारित समय-सारिणी होती है जिसके अनुसार शिक्षण कार्य संपन्न होता है।
13. इस प्रकार की शिक्षण संस्थानों में
केवल प्रशिक्षित शिक्षक ही शिक्षण दे सकते हैं।
14. इस प्रकार की शिक्षा को चार-दीवार
शिक्षा भी कहते हैं।
15. इस प्रकार की शिक्षा (aupcharik
shiksha) में शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों को पता होता है कि क्या
सीखना है और क्या सिखाना है।
16. इस प्रकार की शिक्षा में अनुशासन पर
अधिक ध्यान रखा जाता है अतः अनुशासन सख्त होता है।
17. इस प्रकार की शिक्षा (aupcharik
shiksha) में नियमित तौर पर परीक्षाएं कराई जाती हैं।
18. इस प्रकार की शिक्षा में परीक्षा के
परिणाम घोषित किए जाते हैं तथा अंत में विद्यार्थी को प्रमाण पत्र या डिग्री
प्रदान की जाती है।
अनौपचारिक शिक्षा (anopcharik shiksha)
शिक्षा की संस्थाओं
में अनौपचारिक शिक्षा (anopcharik shiksha) शब्द के अर्थ को
अगर हम समझें तो सामान्य शब्दों में इसका अर्थ यह निकलता है कि किसी कार्य को करने
के लिए हमें न तो किसी नियम का पालन करना है न ही किसी प्रकार की कोई औपचारिकता
निभानी है। अनौपचारिक शिक्षा की प्राप्ति करने के लिए हमें किसी प्रकार की कोई
संस्था या पाठशाला की आवश्यकता नहीं पड़ती। अनौपचारिक शिक्षा की प्राप्ति हम कभी
भी और कहीं भी, किसी भी स्थान पर, किसी
भी समय, किसी भी अवस्था में ग्रहण कर सकते हैं।
अनौपचारिक शिक्षा (anopcharik shiksha) की परिभाषा:
अनौपचारिक शिक्षा (anopcharik shiksha) के बारे में कई
शिक्षाशास्त्रियों एवं विद्वानों ने परिभाषाएं दी हैं जो की इस प्रकार हैं-
कूंंबस और अहमद के अनुसार-
“जनसंख्या में विशेष उपसमूहों, वयस्क तथा बालकों का चुना हुआ इस प्रकार का अधिगम प्रदान करने के लिए
औपचारिक शिक्षा व्यवस्था के बाहर कोई भी संगठित कार्यक्रम है।”
ला बैला के अनुसार
“औपचारिक शिक्षा का संदर्भ विशिष्ट लक्षित जनसंख्या
के लिए स्कूल से बाहर संगठित कार्यक्रम है।”
इलिच और फ्रेयर के अनुसार
“अनौपचारिक शिक्षा औपचारिक विरोधी शिक्षा है।”
मोती लाल शर्मा के अनुसार
“संक्षेप में कोई कह सकता है कि अनौपचारिक शिक्षा एक
सक्रिय, आलोचनात्मक, द्वंदात्मक
शैक्षिक कार्यक्रम है जो की मनुष्यों को सीखने, स्वयं अपनी
सहायता करने, चेतन रूप से अपनी समस्याओं का आलोचनात्मक रूप
से सामना करने में सहायता करता है। अनौपचारिक शिक्षा का लक्ष्य संकलित, प्रामाणिक मानव प्राणियों का विकास करना है जो की समाज के विकास में
योगदान दे सकें। इसमें न केवल व्यक्ति बल्कि एक सच्चे अधिगम समाज में योगदान देते
हुए सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था सीखती है।”
अनौपचारिक शिक्षा (anopcharik shiksha) के बारे में हम निम्न बिंदुओं
से जान सकते हैं –
1. इस प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने के लिए कोई
निश्चित स्थान नहीं होता। इस प्रकार की शिक्षा को हम चलते-फिरते कहीं भी ग्रहण कर
सकते हैं।
2. इस प्रकार की शिक्षा का कोई पूर्व-निर्धारित
लक्ष्य नहीं होता।
3. इस प्रकार की शिक्षा को हम कभी भी, कहीं भी और किसी भी आयु में प्राप्त कर सकते हैं।
4. इस प्रकार की शिक्षा को बच्चा जन्म से मृत्यु तक
प्राप्त करता है।
5. इस प्रकार की शिक्षा के कोई पूर्व-निर्धारित
लक्ष्य नहीं होते हैं अतः इस प्रकार की शिक्षा के ऋणात्मक परिणाम भी हो सकते हैं।
6. इस प्रकार की शिक्षा को शिक्षार्थी अपने आस-पास
के पर्यावरण तथा समाज से ग्रहण करता है।
7. इस प्रकार की शिक्षा के कोई नियम नहीं होते।
8. इस प्रकार की शिक्षा में शिक्षार्थी को हर प्रकार
की आजादी होती है, तथा वह किसी से भी, किसी
भी प्रकार की शिक्षा ग्रहण कर सकता है।
9. इन संस्थानों को बनाने के लिए इनके पीछे किसी भी
प्रकार का कोई भी संगठन नहीं होता।
10. इस प्रकार की संस्थानों में किसी भी प्रकार का
कोई भी पूर्व-निर्धारित पाठ्यक्रम नहीं होता है।
11. इस प्रकार के शिक्षण में किसी भी प्रकार की कोई
परीक्षा नहीं होती।
12. इस प्रकार की शिक्षा में किसी भी प्रकार की कोई
भी समय-सारिणी नहीं होती।
13. इस प्रकार की शिक्षा शिक्षार्थी कभी भी, कहीं भी, किसी से भी ले सकता है।
14. इस प्रकार के शिक्षण में किसी भी प्रकार का कोई
भी प्रमाण पत्र या डिग्री नहीं दिया जाता है।
15. इस प्रकार के शिक्षण में किसी भी प्रकार का कोई
भी शुल्क न तो लिया जाता है न ही दिया जाता है।
16. इस प्रकार की शिक्षा को ग्रहण करने या प्रदान
करने में किसी भी प्रकार का कोई भी मानसिक दबाव नहीं होता है।
निरौपचारिक शिक्षा –
इस
शिक्षा को गैर औपचारिक शिक्षा तथा औपचारिकेत्तर शिक्षा के नाम से भी जाना जाता है।
यह शिक्षा औपचारिक व अनौपचारिक शिक्षा का मिला जुला रूप है। इस शिक्षा में औपचारिक
शिक्षा के समान न तो अनेक नियमादि होते हैं और न ही अनौपचारिक शिक्षा जैसा खुलापन।
निरोपचारिक अथवा औपचारिकेत्तरशिक्षा में छात्रों की आवश्यकता अथवा परिस्थिति के
अनुरूप ऐसी लचीली शिक्षा प्रणाली अपनायी जाती है, जिसमें शिक्षा सम्बन्धी सभी औपचारिकताओं व सुविधाओं को ध्यान में रखकर
कार्यक्रम संचालित किये जाते हैं ताकि वे सभी के लिए सम्भव व उपयोगी बन सके। यह
शिक्षा समयबद्ध नहीं होती है। आवश्यकतानुसार हर परिस्थिति में व्यवस्थित की जाती
है।
औपचारिकेत्तर अथवा निरौपचारिक शिक्षा
की परिभाषा- विद्वानों द्वारा दी गयी इस शिक्षा की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित
है-
कुण्डू के अनुसार- “निरोपचारिक शिक्षा नियोजित होती
है। परन्तु पूर्णता विद्यालयी नहीं, यह शिक्षा विद्यालय के बाहर योजनाबद्ध किन्तु
औपचारिक शिक्षा की तरह नहीं होती।”
वार्ड तथा डेटम के अनुसार- “निरौपचारिक शिक्षा एक नियोजित
अनुदेशात्मक अभिकल्प है, जो नियमित नीति द्वारा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बाह्य
तथा आन्तरिक दोनों प्रकार की विधियों का प्रयोग अधिक लचीले वातावरण में करता है।”
औपचारिकेत्तर / निरौपचारिक शिक्षा की
विशेषताएँ
निरौपचारिक शिक्षा पद्धति किसी
निश्चित समयावधि तक नहीं होती बल्कि जीवन पर्यन्त चलती रहती है।
औपचारिकेत्तर अथवा निरौपचारिक शिक्षा
की समयावधि तथा अन्य कार्यक्रमों का निर्धारण छात्रों की सुविधा को ध्यान में रखकर
किया जाता है।
औपचारिक अथवा निरौपचारिक शिक्षा
कार्यक्रमों के संचालन में लचीलापन होता है और उद्देश्य सामान्य शिक्षा का प्रसार
करना होता है। इसकी कक्षाएँ सुविधाजनक स्थानों जैसे- धर्मशाला, खेत, मिलों के प्रांगण या सार्वजनिक
स्थानों पर आयोजित की जाती है परन्तु लचीलापन होने के बावजूद निरौपचारिक शिक्षा
नियोजित व व्यवस्थित होती है।
औपचारिकेत्तर शिक्षा के अनुदेशक के
कर्तव्य सामान्य अध्यापक से भिन्न होते हैं क्योंकि प्रायः स्थानीय व्यक्ति ही
अपने रोजगार के साथ-साथ अंशकालिक रूप से सेवाभाव से परिपूर्ण होकर अनुदेशक के
उत्तरदायित्व को निभाता है।
निरौपचारिक शिक्षा का पाठ्यक्रम
यद्यपि निर्धारित होता है परन्तु छात्रों की विशिष्ट आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन
भी किया जाता है।
स्वदेशी शिक्षा
स्वदेशी शिक्षा - इसका तात्पर्य
औपचारिक या गैर - औपचारिक शैक्षिक प्रणालियों का उपयोग करके स्वदेशी ज्ञान, मॉडल, विधियों
और समग्र के शिक्षण से है। अंग्रेजों के आगमन के समय स्वदेशी शिक्षा का प्रचलन था।
स्वदेशी शिक्षा की कुछ विशेषताएँ:
1. घर, मन्दिरों, पथशालाओं, टोलो, चेटपेडियों, मकतबों, मदरसों, और गुरूकुलों में स्वदेशी शिक्षा दी जाती है।
2. उस अवधि के दौरान, ज्ञान को पवित्र माना जाता था इसलिए
कोई शुल्क नहीं लिया गया था। शिक्षा में योगदान दान का सर्वोच्च रूप माना जाता था।
धनी व्यापारियों, धनी माता - पिता और समाज से वित्तीय
सहायता प्राप्त होती थी।
3. रूप, सामग्री, लक्ष्य समूह, स्थान, कवरेज, समर्थन, संगठन, प्रशासन, और
इसी तरह, भौगोलिक क्षेत्र से क्षेत्र में, समय - समय पर, राज्य से राज्य, धर्म से धर्म और गतिविधियों से गतिविधियों तक
व्यापक रूप से भिन्न होता है।
5. वे उदार शिक्षा की विभिन्न
शाखाओं जैसे व्याकरण, साहित्य, काव्य, कानून, दर्शन
और तर्क का अध्ययन करते हैं।
6. शिक्षा गतिविधियां, अक्सर, मूल रूप से सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक, चिकित्सा, ललित कला, और
साहित्यिक घटनाओं और पहलुओं के ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए थी।