1st Semester Education
शिक्षा की मूलभूत संकल्पना एवं विचार
Unit 1
Chapter 1
अर्थ
उद्देश्य तथा प्रक्रिया शिक्षा का अर्थ :
शिक्षा शब्द की
उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शिक्ष धातु
से हुई है जिसका अर्थ
है सीखना और सिखाना | इस
व्याख्या के अनुसार यह कहा जा सकता
है कि
शिक्षा एक सीखने की प्रक्रिया और सिखाने की प्रक्रिया है|
शिक्षा के लिए
अंग्रेजी भाषा में प्रयुक्त शब्द एजुकेशन है जो कि लैटिन
भाषा के दो शब्द एजुकेटम और एजुकेयर से
हुआ है| अलग-अलग
समय पर कई
दार्शनिकों ,मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्रीय
व नीतियों ने
शिक्षा के बारे में
अपने विचार प्रस्तुत किए| वह
विचार निम्नलिखित है:-
- शिक्षा वह है जो व्यक्ति को आत्मनिर्भर वह
निस्वार्थ बनाती है ऋग्वेद |
- मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना
ही शिक्षा है स्वामी
विवेकानंद|
- शिक्षा मानव की संपूर्ण शक्तियों का प्रकृतिक
प्रगतिशील और सामंजस्य पूर्ण विकास है एस्ट्रोलॉजी |
- शिक्षा बच्चों के आंतरिक विकास रूसो|
शिक्षा किसी भी समाज
में सदैव चलने वाली एक सामाजिक प्रक्रिया है जिससे मनुष्य की जन्मजात शक्ति का
विकास होता है तथा उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि होती है और व्यवहार में
परिवर्तन किया जाता है|
शिक्षा के मूल
उद्देश्य:
किसी भी समाज में उस समाज के सामाजिक
जीवन के उद्देश्य वहां की शिक्षा के उद्देश्य को निर्धारित अथवा प्रभावित करते हैं
हमेशा से शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास तथा समाज का
विकास करते हुए उसकी निरंतरता को बनाए रखना है|
शिक्षा के कुछ प्रमुख उद्देश्य इस
प्रकार है:
1. सामाजिक विरासत का हस्तांतरण - शिक्षा के द्वारा एक पीढ़ी अपने आने
वाली पीढ़ी को अपने ज्ञान लोक जलन लोक नीति तथा सामाजिक गठन के संस्थापक प्रतिमाओं
को पीढ़ी दर पीढ़ी स्थान तारीफ करती है अर्थात एक पीढ़ी अपनी आने वाली पीढ़ी को कई
ऐसी चीजें देती है जिससे आने वाली पीढ़ी को गीत हुई पीढ़ी के बारे में सब कुछ पता
हो|
2. शारीरिक विकास का उद्देश्य: अरस्तु के अनुसार स्वास्थ्य शरीर में स्वस्थ
मन का निर्माण ही शिक्षा है| शारीरिक विकास
शिक्षा का एक सार्वभौमिक उद्देश्य है यह उनकी मांसपेशियों को सशक्त बनाने ज्ञान
विधियों एवं कर्म विधियों के विकास तथा जन्मजात शक्तियों का विकास से जुड़ा है|
3. मानसिक विकास का उद्देश्य : शिक्षा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण
उद्देश्य है कि बच्चों के विचारों के आदान प्रदान हेतु भाषा का ज्ञान एवं वस्तु
जगत तथा अध्यात्म जगत को जानने के लिए अलग-अलग विषयों का ज्ञान प्रदान करें यह
शिक्षा बच्चों के मानसिक विकास में सहायक होती है|
4. सामाजिक विकास का उद्देश्य: एक अच्छी शिक्षा प्रणाली समाज में विकास
के लिए बहुत महत्वपूर्ण है समाज में रहने वाले सभी व्यक्तियों व बच्चों को अच्छी
शिक्षा प्राप्त होने से वह समाज में विकास के लिए कार्य करते हैं|
5. नैतिक एवं चरित्र विकास का उद्देश्य: चरित्र निर्माण का संबंध मनुष्य
के संपूर्ण से होता है बच्चों में नैतिक एवं चारित्रिक विकास शिक्षा का प्रमुख
उद्देश्य है शिक्षा से बच्चों में ईमानदारी परोपकार इच्छा कर्तव्य नेता आदि गुणों
का विकास होता है|
6. सांस्कृतिक विकास का उद्देश्य: हर समाज में अपनी एक संस्कृति होती है
और शिक्षा द्वारा लोग अपनी संस्कृति धरोहर को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित करते हैं
तथा शिक्षा के द्वारा ही संस्कृति का विकास होता है|
7. व्यवसायिक विकास का उद्देश्य : रोटी कपड़ा और मकान किसी भी मनुष्य की
सबसे मौलिक आवश्यकताएं होती हैं इसीलिए शिक्षा द्वारा इन प्राथमिक आवश्यकताओं की
पूर्ति किया जाना शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य बनता है|
8. नागरिकता एवं शासन तंत्र की शिक्षा का उद्देश्य: किसी भी देश के
नागरिक को वहां के नागरिक कर्तव्य एवं जिम्मेदारियों को निभाना पड़ता है शिक्षा का
उद्देश्य होता है कि बच्चों को इस तरह से प्रशिक्षित करें कि वह अपने सभी नागरिक
कर्तव्य को एवं जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निर्वहन कर सके|
शिक्षा एक प्रक्रिया के रूप में:
शैक्षिक प्रक्रिया के विकास की शुरुआती दौर में शिक्षा को एक संचयन की प्रक्रिया
माना जाता था| इसके अनुसार शिक्षा का कार्य होता था
कि वह बच्चों के खाली दिमाग में ज्ञान के बीज बोए |
1. जान एडम के अनुसार शिक्षा शिक्षार्थी और शिक्षक के बीच चलने वाली एक
द्विध्रुवीय प्रक्रिया है|
2. रायबर्न द्वारा शिक्षा को द्विध्रुवीय प्रक्रिया माना गया है उनके अनुसार
शिक्षार्थी शिक्षक और पाठ्यचार्य शिक्षा के तीन रूप है|
शिक्षा को एक प्रक्रिया के रूप में और
बेहतर से समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम उसके अनेक रूपों के बारे में समझे
शिक्षा के रूप निम्नलिखित है:
1. औपचारिक शिक्षा- विद्यालयों महाविद्यालयों विश्वविद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा
को औपचारिक शिक्षा कहा जाता है| इस तरह की शिक्षा
के उद्देश्य पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों सभी संस्था द्वारा निश्चित की जाती है | यह पूर्ण रूप से योजना बंद होती है तथा इसमें बहुत ही कम लचीलापन
होता है| क्या पढ़ना वह पढ़ाना है यह पहले से
ही निश्चित होता है तथा समय के साथ-साथ इसमें कुछ परिवर्तन आते रहते हैं|
2.निरौपचारिक शिक्षा - निरौपचारिक शिक्षा को औपचारिक शिक्षा की तरह विद्यालय महाविद्यालय
विश्वविद्यालय आदि की सीमा में नहीं बांधा जाता परंतु इसके उद्देश्य और पाठ्यक्रम
निश्चित होते हैं तथा उसकी योजना में भी काफी लचीलापन होता है इसका मुख्य उद्देश्य
शिक्षा का प्रसार तथा उसे व्यवस्थित करना होता है| प्रौढ़ शिक्षा खुली शिक्षा सतत शिक्षा तथा दूरस्थ शिक्षा इसके
विभिन्न रूप हैं| यह उन व्यक्तियों को शिक्षित करने में
सहायक है जो औपचारिक शिक्षा का लाभ नहीं उठा पाते इसके द्वारा शिक्षा को निरंतरता
प्रदान की जाती है|
3. अनौपचारिक शिक्षा - यह वह शिक्षा है जिसकी ना तो कोई निश्चित योजना होती है और ना ही
निश्चित उद्देश्य पाठ्यचर्या शिक्षण विधियों होती है उसे अनौपचारिक शिक्षा कहा
जाता है उदाहरण के लिए बच्चों की प्राथमिक शिक्षा अनौपचारिक तरीकों से सबसे पहले
घर में ही शुरू की जाती है| व्यक्ति के आचरण एवं भाषा के उचित
दिशा देने के लिए उनके अनुभवों को व्यवस्थित करने के लिए उनकी रूचि और योग्यता के
अनुसार किसी विषय कार्य में प्रशिक्षित करने के लिए अनौपचारिक और औपचारिक शिक्षा
का प्रावधान बहुत ही आवश्यक है|
अकादमिक डिसिप्लिन ज्ञान की उस शाखा को संदर्भित करता है जिसमें ऐसे लोग विशेषज्ञता
परियोजना पूछताछ समुदाय और शोध आदि में शामिल किए जाते हैं जो किसी विषय क्षेत्र
से संबंधित होते हैं| मनोवैज्ञानिक,गणित, दर्शन समाजशास्त्र आदि सभी एकेडमिक
डिसीप्लिन है|
डिसिप्लिन की उत्पत्ति हुई से सदी की
शुरुआती दौर में जर्मन विश्वविद्यालय में हुई| 1970 से 1980 के दशक में कई नए एकेडमिक
डिसएप्लायंस जो किसी विशिष्ट शिक्षा और पर
केंद्रित होते थे जैसे मीडिया अध्ययन महिला अध्ययन आदि विषय में तेजी से वृद्धि है|