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Hindi A 4th Semester Unit 2 Chapter 2 (मलबे का मालिक ( मोहन राकेश ) DU SOL NCWEB IGONU

 Hindi A

4th semester / 2nd Year

 

Unit 2 chapter 3

 

मलबे का मालिक ( मोहन राकेश )



मोहन राकेश की जीवनी :-

 

मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 में अमृतसर के एक मध्यवर्ती परिवार में हुआ था।

उनके पिता का नाम कर्रमचंद्र गुगलानी था और वह वकील थे परंतु उनके पारिवारिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी।

मोहन राकेश का आरंभिक नाम मदन मोहन गोकलानी था उसके बाद उनका नाम मदन मोहन के नाम से जाने जाते अंत में वह मोहन राकेश के नाम से प्रसिद्ध हुए।

 

शिक्षा विवरण :-

मोहन राकेश की प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर और उच्च शिक्षा लाहौर के ओरिएंटल कॉलेज में हुई।

वहां से उन्होंने शास्त्री की उपाधि ली और संस्कृत में m.a. किया।

 

भारत पाकिस्तान विभाजन के समय वह परिवार सहित जालंधर आकर बस गए हिंदी M.A. में उन्होंने विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया।

मोहन राकेश ने सारिका  पत्रिका का संपादन भी किया था।

तथा मोहन राकेश ने कई और प्रकार की पद्धति भी ग्रहण की थी।

49 वर्ष की उम्र में उनकी अचानक मृत्यु 3 दिसंबर 1972 को दिल्ली में हुई।

 

 

साहित्य परिचय :-

मोहन राकेश ने बहुत सारी कहानियां लिखी जो समय-समय पर अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई कहानी का विवरण निम्नलिखित है -

  इंसान के खंडहर 1950

  नये बादल 1957

  जानवर और जानवर 1958

  एक और जिंदगी 1961

  फौलाद का अकाश 1966

  आज के साये 1967

  एक और दुनिया

  मिले-जुले चेहरे

  चेहरे तथा अन्य कहानियां

  क्वार्टर और अन्य कहानियां

अन्य बहुत सारी कहानियों का लेखन किया है मोहन राकेश ने।

 

उपन्यास साहित्य :- मोहन राकेश की सर्वप्रथम उपन्यास रचना है  स्वाह और सफेद

   अंधेरे बंद कमरे 1961

  ना आने वाला कल 1968

  अंतराल 1972

 

नाटय साहित्य-

नाटक के क्षेत्र में मोहन राकेश ने विशेष योगदान दिया है।

उनके प्रकाशित नाटक निम्नलिखित है

  ( 1 ) आषाढ़ का एक दिन ( 1958 )

  ( 2 ) लहरों के राजहंस ( 1966 )

   ( 3 ) आधे अधूरे ( 1969 )

  ( 4 ) पैरों तले की जमीन ( 1973 ) में मरणोपरान्त प्रकाशित

  ( 5 ) अंडे के छिलके : अन्य एकांकी तथा बीज नाटक ( 1973 )में मरणोपरान्त प्रकाशित 

  सन् 1959 में ' आषाढ़ का एक दिन ' पर संगीत नाटक एकादमी का ' सर्वोत्कृष्ट नाटक ' पुरस्कार मिला 

  इसी अकादमी से 1981 में भी नाट्य लेखन के लिए मोहन राकेश को पुरस्कार प्राप्त हुआ था 

 

निबंध - साहित्य

  ( 1 ) परिवेश ,

  ( 2 ) रंगमंच और शब्द ,

  ( 3 ) साहित्यकार की समस्याएँमोहन राकेश के निबंध हैं 

यात्रा - विवरण , संस्मरण , रिपोर्ताज , आत्मकथा आदि इस प्रकार हैं

  ( 1 ) आख़िरी चट्टान तक

  ( 2 ) पतझड़ का रंगमंच

  ( 3 ) ऊँची झील

  ( 4 ) सतयुग के लोग

  ( 5 ) बकलम खुदा

मोहन राकेश का व्यक्तित्व :-

 

राकेश प्रखर व्यक्तित्व के स्वामी थे किंतु उनके स्वभाव और आचरण में एकरूपता का अभाव था यह सभी एक समान गरिमा मंडित रहने वाले व्यक्ति नहीं थे अर्थात कभी भी उनका स्वभाव एक प्रकार का नहीं था। जैसा उबलता हुआ लावा कब क्या शकल लेगा कहां नहीं जा सकता लगभग वैसे ही स्थिति उनके स्वभाव की रही है।

 

यदि कुछ लोगों के लिए भी दोस्त के ले जीने वाले थे तो दूसरी तरफ ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी जो उन्हें चरम आत्म केंद्रित और स्वार्थी मानते थे अर्थात कुछ लोगों के लिए वह काफी अच्छे थे वहीं कुछ लोग उन्हें स्वार्थी और गलत मानते थे।

 

कमलेश्वर के विचारों में राकेश पर सबसे बड़ा इल्जाम यह है कि वह कहीं एक जगह टिकते नहीं वह निहायत गैर जिम्मेदार और अनुशासन इन व्यक्ति है।

 

कमलेश्वर ने स्वीकार किया है कि भले ही उन पर से राकेश तुनक मिजाज हो पर उनके व्यक्तित्व में सतह के नीचे भरते हुए जबरदस्त अनुशासन दिखलाई पड़ते हैं अर्थात कमलेश्वर कहना चाहते हैं कि भले ही राकेश कितने भी गुस्सा लिया चिड़चिड़ा क्यों ना हो परंतु उनके स्वभाव के अंदर अनुशासन दिखलाई देता है।

 

राकेश हम अपने बारे में कहते थे मैं एक असंभव व्यक्ति हूं उसके साथ में यह भी कहना चाहता हूं कि मैं बहुत इमानदार आदमी भी हूं।

 

साहित्यकार के रूप में :-

 

मोहन राकेश के जीवन में जो कुछ व्यवहार में था ठीक वैसा ही उनके लेखन में भी है है।

राकेश ने कहानीकार के रूप में हिंदी साहित्य में प्रवेश किया अन्य विधाओं में भी उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए।स्वतंत्रता के बाद की स्थितियों में हमारा जनमानस हमारा जीवन कहां से कहां  गया इसका सही प्रमाण मोहन राकेश के साहित्य हैं एक अर्थ में वह बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के जीवन और साहित्य का प्रमाण दस्तावेज है।

 

कथानक :-

मोहन राकेश ने अपने कहानियों में व्यक्ति को केंद्र बनाकर मध्यवर्गीय चेतना को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है इसीलिए उनके कहानियों में यथार्थ को व्यापक सामाजिक स्तर पर प्रस्तुत किया गया है।

 

मलबे का मालिक कहानी पूरा विवरण :-

 

मोहन राकेश ने अपनी कहानियों में व्यक्ति को केंद्र बनाकर मध्यवर्गीय चेतना को रूपायित करने का प्रयास किया है , इसीलिए उनके कहानियों में यथार्थ को व्यापक सामाजिक स्तर पर प्रस्तुत किया गया है  ' मलबे का मालिक ' नामक कहानी में विभाजन की विभीषिका से उत्पन्न करता और अमानवीयता का मर्मस्पर्शी चित्रण हुआ है  इस कहानी में अब्दुलगनी अमृतसर में आकर अपने मकान को मलबे के ढेर के रूप में देखता है और मलबे का मालिक बनने के लिए कौए और कुत्ते को संघर्ष करते हुए पाता है  इस कथानक में भारत और पाकिस्तान के विभाजन से उत्पन्न इस विभीषिका का चित्रण हुआ है , जिसके फलस्वरूप अनेक परिवार उजड़ गये थे , अनेक व्यक्ति साम्प्रदायिकता का शिकार होकर काल - कवलिन हो गए थे और हजारों घर मलबे का ढेर बनकर रह गये थे  इस कथानक का " मलबा " विभाजन की उसी आतंकपूर्ण स्थिति की करुण गाथा सुना रहा है , जो अराजकता एवं क्रूरता से भरी हुई है  इस कहानी का कथानक इस प्रकार हैचिराग का बूढ़ा पिता अब्दुलगनी लाहौर के कुछ मुसलमानों के साथ अमृतसर आता है  हाकी का मैच देखने का तो बहाना है  दरअसल उन्हें तो यहाँ के बाज़ारों और घरों को देखने का चाव था जो कभी अपने थे पर अब पराए हो गए थे  अमृतसर का " बाँसा बाजार " एक छोटा सा बाजार है  यहाँ की दुकानें आग लगने से जलकर राख हो गई थीं  एक लम्बा समय बीत गया  कई - कई इमारतें खड़ी हो गईं  पर अनेक स्थलों पर अभी भी मलबे के ढेर पड़े थे  अब्दुलगनी ने अपनी मुहल्ले के मनोरी नामक युवक को पहचान लिया  दोनों आपस में कुशलक्षेम पूछने लगे  गनी के पूछने पर मनौरी ने उसे मलबे का एक ढेर दिखाया तो छड़ी के सहारे , बड़ी ही कठिनाई से वहाँ पहुँचकर उसके मुँह से अनायास ही “ आह " निकल गई  ' हाए ओऐ चिरागदीन ' उस मुहल्ले के लोग यह देखकर सोच रहे थे कि अब सारी असलियत खुल जायेगी  वास्तविकता तो यह थी कि एक दिन चिरागदीन खाना खा रहा था तो रक्खे पहलवान ने उसे आवाज देकर नीचे बुलवाया  रक्खे पहलवान की बरसों पुरानी यारी को ध्यान में रखकर यह विकट परिस्थिति की परवाह  करते भी नीचे  गया  पर रक्खे पहलवान ने उसे धोखा दिया  उसे नीचे गिराकर उसकी छाती पर चढ़ बैठा  अपने एक शागिर्द की सहायता से उसने चिरागदीन का प्राणान्त तो किया ही , साथ ही उसकी पत्नी जुबैदा और दो लड़कियों किश्वर और सुल्ताना को भी नहीं छोड़ा  उन तीनों की लाशें नहर के पानी में देखीं गईं  इधर रक्खे पहलवान ने चिरागदीन के नए मकान को हथियाने की सोच रखी थी कि किसी ने उस घर में आग लगा दी  रक्खे पलहवान को यह पता भी  चल सका था कि यह आग लगाने वाला कौन था  लेकिन उस मलबे को अपनी जागीर समझकर वह किसी को भी उसके पास फटकने तक नहीं देता था  उसके एक शागिर्द ने उसे अब्दुलगनी के उस मलबे को देखने की खबर दी  अभी पहलवान कुछ सोचता , इससे पहले उसने देखा कि मनोरी गनी की बाँह पकड़े उधर ही  रहा था  कुएँ के पास पहुँचकर गनी ने रक्खे पहलवान को पहचानकर उसे कोई भी उत्तर नहीं दिया  उसने रक्खे पहलवान से मिलकर  केवल प्रसन्नता व्यक्त की वरन् उसे अपनी वर्तमान निराशा के बारे में अत्यंत शोकग्रस्त शब्दों के द्वारा बताया कि वह तो अपना भरापूरा घर देखने आया था , पर यहाँ तो सब कुछ मिट्टी हो गया है  रक्खे पहलवान के प्रति पूरा विश्वास प्रकट करते हुए उसने पहलवान से पूछा कि उसके यहाँ रहते यह सब कैसे हो गया  जबकि उसके पुत्र चिराग को तो पहलवान पर पूरा भरोसा था  उन सबमें जो भाईचारा , उसी के भरोसे तो चिराग को यहाँ छोड़कर गनी पाकिस्तान चला गया था  वह यह भी बताता है कि चिराग को पूरा विश्वास था कि रक्खे पहलवान के होते हुए उसे कोई हाथ भी नहीं लगा सकता  यह सब सुनकर पहलवान की मानसिक और शारीरिक स्थिति बुरी तरह गड़बड़ा गई  उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया तथा उसकी ' रीढ़ की हड्डी ' भी मानो सहारा ढूँढने लगी  पर गनी तो इस सबसे अनजान था  रक्खे के प्रति आभार प्रकट करते हुए उसने कहाजी हल्का  कर रक्खिया  जो होनी थी सो हो गई  मैंने तुम्हें देख लिया तो चिराग को देख लिया  तुम सेहतमंद रहो  जीते रहो और खुशियाँ देखो  " उस रात रक्खा पहलवान रोज की ही तरह गली के बाहर तख्ते पर बैठा था  इसी समय एक कौआ कहाँ से भटककर उस मलबे में पड़ी चौखट पर बैठ गया तो कौने में लेटा हुआ कुत्ता गुर्राकर उस पर भौंकने लगा  कौए के उड़ जाने के बाद कुत्ता पहलवान को देखकर उस पर भौंकने लगा  पत्थरमारने पर भी वह ना हटे तो पहलवान को एक की सिल पर जा लौटा इधर कुत्ता बहुत देखकर भोक्ता और गुर्राता रहा।


 

पात्र और चरित्र चित्रण :-

 

मोहन राकेश ने अधिकांश ऐसे पात्रों का चित्रण किया है जो पारिवारिक विघटन  या परिवार में किसी प्रकार की समस्या को चलते हैं इसमें अधिकांश वह किरदार हैं जो कि कई परेशानियों को झेल चुके हैं।

 

इस कहानी में मुख्य किरदार अब्दुलगनी का है जो लाहौर से अमृतसर में अपने मकान को देखने के लिए आता है।

गनी  अपने उस मकान को देखने के लिए आया था जिसके कारण उसका पुत्र चिराग्दीन पाकिस्तान ना जाकर अपने घर में रहना चाहता था और उसी मकान के कारण उसकी बीवी और बच्चे की मौत हो गई। वह मकान बस एक खंडहर बन गया है एक प्रकार का मलबा पड़ा हुआ है 

 

गनी मियां एक निराश पता है जो अपने परिवार को मुसीबतों से नहीं बचा सका पुत्र की मृत्यु को होनी मानकर जीवन में आगे बढ़ गया है।

 

दूसरा पात्र रक्खा पहलवान है जो अमृतसर वासी और गली का दादा है। उस कार आप सभी पर बहुत अधिक है सभी उस से डरे और सहमे रहते हैं।

गनी मियां के नए मकान के लालच के कारण वह चिराग्दीन के परिवार को समाप्त कर डालता है।

परंतु गनी मियां को इसके बारे में कुछ भी नहीं पता था वह जब पहलवान से मिलते हैं तो उसका आदर सत्कार करते हैं और उसे केवल दुआएं देता हैं।

 

 

कहानी का अंत चिप्स रूप में हुआ है उसमें एक कौवा और कुत्ता मलबे के लिए झगड़ रहे हैं पहलवान मलबे के आसपास किसी को भी नहीं भटकने देता और वह कुत्ते को भगाने के लिए एक पत्थर उसकी तरफ फेक कर मारता है और कुत्ता फिर भी वहां से नहीं मिलता और पहलवान की तरफ देख कर भौक्ता रहता है।

 

मोहन राकेश के संवादों की प्रमुख विशेषता यह है कि वे संक्षिप्त और सरल होते हुए भी अनुभूतियों की सहज और प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति में पूर्ण सफल रहे हैं अर्थात उनके सरल कहानियां भी बहुत ही ज्यादा भावुकता पूर्ण और एक विशेष संदेश की होती हैं।

 

जिस प्रकार मोहन राकेश ने गनी और रक्खा पहलवान के संवाद और चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट किया है यह एक भावुकता पूर्ण और मानसिक भावना के व्यवहार को प्रदर्शित करती है।

 

मोहन राकेश के वातावरण सृष्टि की अन्य महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि लेखक ने आदमपुर स्थिति का वर्णन इतनी सच्ची बता के साथ किया है कि उसका आतंक पाठक पर भी छा जाता है जिसके कारण हृदय धड़कने लगता है और कहानी उनके मन प्राण पर छा जाती है।

 

मोहन राकेश ने कहानी में इतनी सजीव ता को प्रस्तुत किया है कि पढ़ने वाले खुद को इस कहानी से जोड़ लेते हैं और कहानी को अधिक से अधिक पढ़ने की लालसा उन्हें पैदा होती है।

 

रचना शिल्प :-

रचना शैली में लेखक को पत्र डायरी संस्मरण प्रतीक निबंध रेखाचित्र जो भी वाहन मिला है उसी के निसंकोच स्वीकार करके उन्होंने अपनी कहानी की रचना की है। मलबे का मालिक  में मुख्य रूप से ऐतिहासिक शैली का प्रयोग किया है पर उसने कथोपकथन शैली और प्रतीकात्मक शैली का भी कुछ भाग मौजूद है।

 

प्रस्तुत कहानी की भाषा में तत्समतद्भवदेशराजविदेशजविदेशी ग्रामीण इनमें से जिस भी प्रकार की शब्द की आवश्यकता का अनुभव हुआ है वैसे ही लेखक है उसका प्रयोग किया है। उर्दू और पंजाबी के शब्दों का प्रयोग इस कहानी में किया गया है।

 

लेखक ने कहानी के अंतिम चरण में कौवे और कुत्ते का चित्रण किया है जहां पर हम सांकेतिकता को महसूस कर सकते हैं कौवा कुत्ता और पहलवान तीनों मलबे पर अपना हक जमाना चाहते हैं।

 

मलबे का मालिक कहानी में लेखक का उद्देश्य सामाजिक स्तर पर यह प्रस्तुत करना है कि जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ था तो देश में क्या परिणाम आया था।

कहानी में लेखक का पहलवान के द्वारा यह जानना चाहता है कि विभाजन के समय लोगों की क्या हालत हुई थी और कुछ लोग किस प्रकार दूसरों पर अपना हक जमाने लग गए थे।

 

कहानी के अंत में सांकेतिक भाव के द्वारा लेखक ने यह दर्शाया है कि कौवा कुत्ता और पहलवान तीनो के तीनो मिलकर जमीन पर अपना अधिकार जमाना चाहते हैं अपने-अपने दृष्टि से।

 

इस कहानी में प्रस्तुत किया गया गद्यांश आधुनिक कलर कहानीकार मोहन राकेश की कहानी मलबे के मालिक में से एक अवतरित भाग है जो कि देश विभाजन के समय पाकिस्तान गए उनके मुसलमान उचित अवसर मिलने पर भारत आकर उन सभी गली मोहल्लों को देखना चाहते थे जहां रहते हुए उन्हें लंबा समय बिताया था।

 

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